Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! जब किसी को किसी से इ़श्क़ हो जाता है, तो आ़शिक़ अपने क़ल्बी जज़्बात का इज़्हार और मह़बूब की ता'रीफ़ो तौसीफ़ बयान करने के लिये बसा अवक़ात अश्आ़र का सहारा लेता है क्यूंकि अश्आ़र के ज़रीए़ अपने दिली जज़्बात बहुत अच्छे अन्दाज़ में बयान किये जा सकते हैं । लिहाज़ा आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने भी अपने इ़श्क़ के इज़्हार के लिये ना'तिया शाइ़री का रास्ता इख़्तियार फ़रमाया । चुनान्चे, इ़श्क़ो मस्ती में डूब कर लिखे गए कलामों पर मुश्तमिल ना'तिया मजमूआ़ बनाम "ह़दाइके़ बख़्शिश" आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की शाइ़री का एक अ़ज़ीम कारनामा है । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की नोके क़लम से तह़रीर किया गया एक एक शे'र, शरीअ़त के बिल्कुल मुत़ाबिक़ है ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! यहां येह बात भी ज़ेहन नशीन रहे कि ना'तिया अश्आ़र तह़रीर करना हर किसी के बस की बात नहीं, न ही हर किसी को इस की इजाज़त है । ना'तिया शाइ़री के लिये फ़न्ने शाइ़री के उसूलों के साथ साथ इ़ल्मे दीन की दौलत और उ़लमाए ह़क़ की सोह़बत वग़ैरा कई चीज़ें ज़रूरी हैं । बहुत से ऐसे शाइ़र जिन का दुन्यवी शाइ़री में कोई सानी नहीं मगर जब उन्हों ने ना'तिया शाइ़री के मैदान में क़िस्मत आज़माई, तो इ़ल्मे दीन और उ़लमाए दीन की सोह़बत से मह़रूम होने की वज्ह से ऐसी ऐसी ठोकरें खाईं कि اَلْاَمَان وَالْحَفِیْظ । बहर ह़ाल आ़फ़िय्यत इसी में है कि आ़म लोग ना'त शरीफ़ लिखने का ख़याल अपने दिल से निकाल दें क्यूंकि येह आसान काम नहीं ।
क़ुरबान जाइये ! आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के कमाले एह़तियात़ पर कि ना'त लिखने के पूरे त़ौर पर अहल होने और फ़न्ने शाइ़री के उसूलों में महारत ह़ासिल होने के बा वुजूद ना'त शरीफ़ लिखने को एक मुश्किल काम कहा करते थे । चुनान्चे, ख़ुद ही फ़रमाते हैं : ह़क़ीक़तन ना'त शरीफ़ लिखना निहायत मुश्किल है जिस को लोग आसान समझते हैं, इस में तलवार की धार पर चलना है । (मल्फ़ूज़ाते आ'ला ह़ज़रत, स. 227)
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपनी किताब "कुफ़्रिय्या कलिमात के बारे में सुवाल जवाब" के सफ़ह़ा 232 पर ना'तिया शाइ़री करने के बारे में इरशाद फ़रमाते हैं : येह सुन्नते सह़ाबा है, या'नी बा'ज़ सह़ाबा (عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان) मसलन ह़स्सान बिन साबित رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ और ह़ज़रते सय्यिदुना ज़ैद رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ वग़ैरा से ना'तिया अश्आ़र लिखना साबित है, ताहम येह ज़ेहन में रहे कि ना'त शरीफ़ लिखना निहायत मुश्किल फ़न है, इस के लिये माहिरे फ़न, आ़लिमे दीन होना चाहिये, वरना आ़लिम न होने की सूरत में रदीफ़, क़ाफ़िया और बह़र (या'नी शे'र के वज़्न) वग़ैरा को निभाने के लिये ख़िलाफ़े शान अल्फ़ाज़ तरतीब पा जाने का ख़द्शा रहता है । आ़म लोगों को शाइ़री का