Jawani Me Ibadat kay Fazail

Book Name:Jawani Me Ibadat kay Fazail

काम लेते हुवे ख़ुद को इस त़रह़ दिलासे देती हैं कि "मैं तो अभी तन्दुरुस्त और जवान हूं" यूं झूटी और खोखली उम्मीदों के सहारे ज़िन्दा रहती हैं फिर जैसे जैसे जवानी का ज़वाल शुरूअ़ होता है, तो बुढ़ापा भी अपनी जड़ें मज़बूत़ करता चला जाता है फिर जा कर ऐसों को होश आता है कि अब तो मुझे तौबा कर के ख़ुद को गुनाहों से बचाने और अल्लाह करीम की ख़ूब ख़ूब इ़बादात बजा लाने का पक्का इरादा करना चाहिये फिर अगर्चे बसा अवक़ात हिम्मत कर के नेकियां करने में कामयाब हो भी जाती हैं मगर जवानी की बहारों को याद कर के ख़ूब दिल जलाती और अश्क बहाती हैं कि ऐ काश ! मैं अपनी जवानी को इ़बादतो रियाज़त में बसर कर लेती मगर आह ! जवानी तो किसी "गुज़रे कल" की त़रह़ जा चुकी और अब पलट कर कभी वापस नहीं आएगी ।

मजलिसे मदनी इनआ़मात

        मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! اَلْحَمْدُ لِلّٰہ दा'वते इस्लामी दुन्या भर में मुसलमानों को गुनाहों से बचाने और नेकियों की राह पर लाने के लिये मसरूफे़ अ़मल है, इसी मदनी काम को मज़ीद बढ़ाने के लिये कमो बेश 104 शो'बाजात (Departments) में नेकी की दा'वत आ़म करने के लिये कोशां है । इन्ही शो'बाजात में से एक "मजलिसे मदनी इनआ़मात" भी है । इस मजलिस का बुन्यादी मक़्सद इस्लामी भाइयों, इस्लामी बहनों, जामिआ़तुल मदीना व मदारिसुल मदीना के त़लबा व त़ालिबात को बा अ़मल बनाना और उन्हें मदनी इनआ़मात पर अ़मल की तरग़ीब दिलाना है ।

          शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ इरशाद फ़रमाते हैं कि काश ! दीगर फ़राइज़ व सुनन की बजा आवरी के साथ साथ तमाम इस्लामी भाई और बहनें इन मदनी इनआ़मात को भी अपनी ज़िन्दगी का दस्तूरुल अ़मल बना लें और तमाम ज़िम्मेदाराने दा'वते इस्लामी अपने ह़ल्के़ में इन मदनी इनआ़मात को आ़म करें ताकि हर मुसलमान अपनी क़ब्रो आख़िरत की बेहतरी के लिये इन को इख़्लास के साथ अपना कर