Jawani Me Ibadat kay Fazail

Book Name:Jawani Me Ibadat kay Fazail

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और जो अपने रब के हु़ज़ूर खड़े होने से डरे, उस के लिये दो जन्नतें हैं ।

उस (बा अ़मल) नौजवान ने क़ब्र के अन्दर से दो मरतबा जवाब   दिया : या अमीरल मोमिनीन ! मेरे रब्बे करीम ने मुझे वोह दो जन्नतें अ़त़ा फ़रमा दी हैं । (تاریخِ ابنِ عساکر،عمرو بن جامع بن عمرو بن محمد بن حرب،۴۵/۴۵۰،رقم:۵۳۲۰ ملتقطاً)

        سُبْحٰنَ اللّٰہ ! आप ने सुना कि उस नौजवान ने अपनी सारी ज़िन्दगी गुनाहों से बचते हुवे नेकियों में गुज़ारी, तो मरने के बा'द येह इ़बादत उस की बख़्शिश व मग़फ़िरत का सबब बनी और जन्नत की आ'ला ने'मतें भी नसीब हुईं । याद रखिये ! येह ख़ूब सूरती व जवानी ख़त्म होने वाली दौलत है और इस पर ग़ुरूरो तकब्बुर करना बे वुक़ूफ़ी व नादानी है ।

        मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! तन्दुरुस्ती व जवानी पर इतराने और दिन रात गुनाहों में ज़ाएअ़ करने के बजाए इख़्लास व इस्तिक़ामत के साथ ज़ौके़ इ़बादत और शौके़ तिलावत का मा'मूल बनाए रखिये, ऐसे में अगर बुढ़ापा आ गया और इ़बादत की लगन भी बाक़ी रही, तो सिह़ह़त व हिम्मत न होने के बा वुजूद اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस ह़ालत में भी जवानी की इ़बादतों जैसा सवाब मिलता रहेगा । चुनान्चे,

          ह़ज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिक رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ फ़रमाते हैं : जब बन्दा (ह़ालते इस्लाम में नेकियां करते हुवे) उ़म्र के उस ह़िस्से में पहुंच जाए कि उसे किसी चीज़ के मुतअ़ल्लिक़ (पहले से) इ़ल्म होने के बा वुजूद (ब वक़्ते ज़रूरत) वोह चीज़ याद न रहे, तो अल्लाह करीम उस के नामए आ'माल में वोह नेकियां भी लिखता रहता है जो वोह अपनी सिह़ह़त के ज़माने में किया करता था । (مُسْنَدِ اَبِیْ یَعْلٰی، مسند انس بن مالک،عبداللہ بن عبدالرحمن الانصاری عن انس، ۳/۲۹۳،حدیث:۳۶۶۶)

ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जो बूढ़ा आदमी बुढ़ापे की वज्ह से ज़ियादा इ़बादत न कर सके मगर जवानी में बड़ी (ख़ूब) इ़बादतें करता रहा हो, तो अल्लाह पाक उसे मा'ज़ूर क़रार दे कर उस के नामए आ'माल में वोही जवानी की इ़बादत लिखता है ।