Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa
का कलाम ख़त्म होते ही वोह सारा सोना दोबारा लक्ड़ियों में तब्दील हो गया । उस ने लक्ड़ियों का गठ्ठा अपने सर पर रखा और एक जानिब रवाना हो गया ।
(उ़यूनुल ह़िकायात, ह़िस्सा दुवुम, स. 246, मुलख़्ख़सन)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! इस्लाम में मुत्तक़ी लोगों को बड़ी अहम्मिय्यत ह़ासिल है । अगर किसी शख़्स को ओ़ह्दा व मन्सब पर फ़ाइज़ करना हो, तो उस की दीगर अच्छी सिफ़ात के साथ साथ तक़्वा व परहेज़गारी को भी मद्दे नज़र रखा जाता है । हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن भी अपने मुरीदीन व मुतअ़ल्लिक़ीन में से उन्हीं लोगों को मह़बूब रखते, जो परहेज़गारी में दूसरों से बढ़ कर होते । जैसा कि :
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "इह़याउल उ़लूम" जिल्द 5, सफ़ह़ा 324 पर है कि किसी सूफ़ी बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ का एक नौजवान मुरीद था, बुज़ुर्ग (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) उस नौजवान को बड़ी इ़ज़्ज़त और तरजीह़ देते थे । एक मरतबा किसी मुरीद ने पूछा : आप उस नौजवान को ज़ियादा इ़ज़्ज़त देते हैं, ह़ालांकि उ़म्र रसीदा हम हैं ? बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने कुछ परिन्दे मंगवाए और उन सब मुरीदों को एक एक परिन्दा और छुरी दी और फ़रमाया : तुम में से हर कोई परिन्दे को ऐसी जगह ज़ब्ह़ करे जहां कोई देख न सके । नौजवान मुरीद को भी एक परिन्दा दिया और उस से भी वोही बात इरशाद फ़रमाई । हर एक शख़्स परिन्दा ज़ब्ह़ कर के ले आया लेकिन नौजवान ज़िन्दा परिन्दा हाथ में थामे वापस आया । बुज़ुर्ग (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) ने फ़रमाया : दूसरों की त़रह़ तुम ने परिन्दा ज़ब्ह़ क्यूं न किया ? नौजवान ने अ़र्ज़ की : मुझे कोई ऐसी जगह मिली ही नहीं जहां कोई देखता न हो क्यूंकि रब्बे करीम तो मुझे हर जगह देख रहा है । येह देख कर सब मुरीदों ने उस के मुराक़बे (या'नी सब चीज़ों को छोड़ कर ख़ुदा की त़रफ़ धियान करने के अ़मल) को पसन्द किया और कहा : तुम वाके़ई़ इ़ज़्ज़तो एह़तिराम के लाइक़ हो ।
(इह़याउल उ़लूम, 5 / 324)