Book Name:Aala Hazrat Ki Ibadat o Riazat
करूं तेरे नाम पे जां फ़िदा, न बस एक जां, दो जहां फ़िदा
दो जहां से भी नहीं जी भरा, करूं क्या करोड़ों जहां नहीं
(ह़दाइके़ बख़्शिश, स. 109)
आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ग़ुरबा को कभी ख़ाली हाथ नहीं लौटाते थे, हमेशा ग़रीबों की इमदाद करते रहते, बल्कि आख़िरी वक़्त भी अ़ज़ीज़ो अक़ारिब को वसिय्यत की, कि ग़ुरबा का ख़ास ख़याल रखना, उन को ख़ात़िर दारी से अच्छे अच्छे और लज़ीज़ खाने अपने घर से खिलाया करना और किसी ग़रीब को मुत़लक़ (या'नी बिल्कुल भी) न झिड़कना । अक्सर अवक़ात आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ तस्नीफ़ व तालीफ़ में मश्ग़ूल रहते, पांचों नमाज़ों के वक़्त मस्जिद में ह़ाज़िर होते और हमेशा नमाज़ बा जमाअ़त अदा फ़रमाया करते । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ मह़फ़िले मीलाद शरीफ़ में ज़िक्रे विलादत शरीफ़ के वक़्त सलातो सलाम पढ़ने के लिये खड़े होते बाक़ी शुरूअ़ से आख़िर तक अदबन दो ज़ानू बैठे रहते, यूं ही वा'ज़ फ़रमाते, चार पांच घन्टे कामिल दो ज़ानू ही मिम्बर शरीफ़ पर रहते ।
(ह़याते आ'ला ह़ज़रत जि. 1 स. 98)
ऐ काश ! हमें भी तिलावते क़ुरआने पाक करते या सुनते वक़्त नीज़ इजतिमाए़ ज़िक्रो ना'त, सुन्नतों भरे इजतिमाआत, मदनी मुज़ाकरों, दर्स व मदनी ह़ल्क़ों वग़ैरा में अदबन दो ज़ानू बैठने की सआदत मिल जाए । आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ जहां सीरत व किरदार में बा कमाल थे, वहीं सूरत में भी बे मिसाल थे । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ का क़द (मुबारक) औसत़ (या'नी दरमियाना), पेशानी (मुबारक) चौड़ी, आंखें बड़ी, (बीनी शरीफ़ या'नी) नाक लम्बी (और) खड़ी, चेहरा लम्बा, रंग (मुबारक) गन्दुमी (और) मलीह़, शगुफ़्ता (इस त़रह़ कि) जलाल व जमाल की खुली हुई तफ़्सीर, हाथों की उंगलियां लम्बी, भंवें घनी, गर्दन ऊंची, (सरे अन्वर के) बाल लम्बे जो कान की लौ तक रहते थे । (फै़ज़ाने आ'ला ह़ज़रत, स. 80)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد