Aala Hazrat Ki Ibadat o Riazat

Book Name:Aala Hazrat Ki Ibadat o Riazat

(ह़दाइके़ बख़्शिश, स. 179)

चूंकि येह माहे शव्वालुल मुकर्रम आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की पैदाइश का महीना है, लिहाज़ा इसी मुनासबत से आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की ह़याते त़य्यिबा के एक गोशे या'नी आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की इ़बादतो रियाज़त के ह़वाले से सुनने की सआदत ह़ासिल करेंगी । आइये ! बयान का आग़ाज़ एक ईमान अफ़रोज़ ह़िकायत से करती हैं । चुनान्चे,

ट्रेन रुकी रही

ख़लीफ़ए आ'ला ह़ज़रत, ह़ज़रते मौलाना सय्यिद अय्यूब अ़ली रज़वी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं कि मेरे आक़ा आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ एक बार पीलीभीत से बरेली शरीफ़ ब ज़रीअ़ए रेल (ट्रेन) जा रहे थे । रास्ते में नवाब गंज के स्टेशन पर जहां गाड़ी सिर्फ़ दो मिनट के लिये ठहरती है, मग़रिब का वक़्त हो चुका था, आप ने गाड़ी ठहरते ही तक्बीरे इक़ामत फ़रमा कर गाड़ी के अन्दर ही निय्यत बांध ली, ग़ालिबन 5 अफ़राद आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की इक़्तिदा में नमाज़े बा जमाअ़त के लिये शरीक हुवे, उन में मैं भी था, लेकिन अभी शरीके जमाअ़त नहीं होने पाया था कि मेरी नज़र एक ग़ैर मुस्लिम गार्ड़ पर पड़ी जो प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ा सब्ज़ झन्डी हिला रहा था, मैं ने खिड़की से झांक कर देखा, लाइन क्लियर थी और गाड़ी छूट रही थी, मगर गाड़ी न चली और ह़ुज़ूर आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने ब इत़मीनाने तमाम, बिला किसी इज़त़िराब या'नी बिग़ैर किसी परेशानी के सुकून के साथ तीनों फ़र्ज़ रक्अ़तें अदा कीं और जिस वक़्त दाईं जानिब सलाम फेरा, तो गाड़ी भी चल दी । मुक़्तदियों की ज़बान से बे साख़्ता سُبْحٰنَ اللہ سُبْحٰنَ اللہ سُبْحٰنَ اللہ निकल गया । इस करामत में क़ाबिले ग़ौर येह बात थी कि अगर जमाअ़त प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी होती, तो येह कहा जा सकता था कि गार्ड ने एक बुज़ुर्ग हस्ती को देख कर गाड़ी रोक ली होगी, ऐसा न था बल्कि नमाज़ गाड़ी के अन्दर पढ़ी थी । इस थोड़े वक़्त में गार्ड को क्या ख़बर हो सकती थी कि एक अल्लाह पाक का मह़बूब बन्दा फ़रीज़ए नमाज़ गाड़ी में अदा कर रहा है । (ह़याते आ'ला ह़ज़रत, 3/189अज़ तज़किरए इमाम अह़मद रज़ा, स. 15)