Book Name:Gunahon Ki Nahosat
ह़दीसे मुबारक में आता है : जब कोई इन्सान गुनाह करता है, तो उस के दिल पर एक सियाह नुक़्त़ा बन जाता है, जब दूसरी बार गुनाह करता है, तो दूसरा सियाह नुक़्त़ा बनता है, यहां तक कि उस का दिल सियाह हो जाता है, नतीजतन भलाई की बात उस के दिल पर असर अन्दाज़ नहीं होती ।
(اَلدُّرُّالْمَنْثور ج۸ص۴۴۶)
अब ज़ाहिर है कि जिस का दिल ही ज़ंग आलूद और सियाह हो चुका हो, उस पर भलाई की बात और नसीह़त कहां असर करेगी ! माहे रमज़ान हो
या ग़ैरे रमज़ान, ऐसे इन्सान का गुनाहों से बाज़ व बेज़ार रहना निहायत ही दुशवार हो जाता है, उस का दिल नेकी की त़रफ़ माइल ही नहीं होता । अगर वोह नेकी की त़रफ़ आ भी गया, तो बसा अवक़ात उस का जी इसी सियाही के सबब नेकी में नहीं लगता और वोह सुन्नतों भरे मदनी माह़ोल से भागने ही की तदबीरें सोचता है, उस का नफ़्स उसे लम्बी उम्मीदें दिलाता, ग़फ़्लत उसे घेर लेती और वोह बद नसीब सुन्नतों भरे मदनी माह़ोल से दूर जा पड़ता है । माहे रमज़ान की मुबारक साअ़तें बल्कि बसा अवक़ात पूरी पूरी रातें ऐसा शख़्स खेल कूद, गाने, बाजे, ताश व शत़रंज, गपशप वगै़रा में बरबाद करता है ।
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इस सियाह क़ल्बी का इ़लाज ज़रूरी है और इस के इ़लाज का एक मुअस्सिर ज़रीआ पीरे कामिल भी है, या'नी किसी ऐसे बुज़ुर्ग के हाथ में हाथ दे दिया जाए जो परहेज़गार और सुन्नत का पैकर हो, जिस की ज़ियारत ख़ुदाए पाक व मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की याद दिलाए, जिस की बातें सलातो सुन्नत का शौक़ उभारने वाली हों, जिस की सोह़बत मौत व आख़िरत की तय्यारी का जज़्बा बढ़ाती हो । अगर ऐसा पीरे कामिल मुयस्सर आ जाए तो, اِنْ شَآءَ اللہ عَزَّ وَجَلَّ दिल की सियाही का ज़रूर इ़लाज हो जाएगा । (फै़ज़ाने सुन्नत, स. 920) और येह अल्लाह करीम का ख़ास करम है कि वोह हर दौर में अपने प्यारे मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की उम्मत की इस्लाह़ के लिये अपने