Book Name:Gunahon Ki Nahosat
और महीनों के मुक़ाबले में नेकियां बढ़ा दी जाती हैं, इसी त़रह़ गुनाहों का भी मुआमला है । (फै़ज़ाने सुन्नत, स. 919 ( المعجم الصغیرللطبرانی،ص:۲۴۷،
تُوبُوا اِلَی اللہ! اَسْتَغْفِرُاللہ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइया ! देखा आप ने कि रमज़ानुल मुबारक का तक़द्दुस पामाल करने वालों को इस ह़दीसे पाक में किस क़दर झन्झोड़ा गया है, लिहाज़ा लरज़ उठिये और माहे रमज़ान की ना क़द्री से बचने का ख़ुसूसिय्यत के साथ सामान कीजिये । अगर हम ज़िल्लतो रुस्वाई से बचना चाहते हैं, तो
हमें रमज़ान का अदबो एह़तिराम बजा लाना होगा । इस माहे मुबारक में दूसरे महीनों के मुक़ाबले में जिस त़रह़ नेकियां बढ़ा दी जाती हैं, इसी त़रह़ दीगर महीनों के मुक़ाबले में गुनाहों की हलाकत ख़ेज़ियां भी बढ़ जाती हैं । माहे रमज़ान में शराब पीने वाला और बदकारी करने वाला तो ऐसा बद नसीब है कि आइन्दा रमज़ान से पहले पहले मर गया, तो अब उस के पास कोई नेकी ऐसी न होगी जो उसे जहन्नम की आग से बचा सके ।
याद रहे ! आंखों के लिये बद निगाही और अजनबिय्या (या शहवत के साथ अम्रद के) छूने को बदकारी कहा गया है, लिहाज़ा ख़बरदार ! ख़बरदार ! ख़बरदार ! माहे रमज़ान में बिल ख़ुसूस अपने आप को बद निगाही और अम्रद बीनी से बचाइये, ह़त्तल इमकान "आंखों का क़ुफ़्ले मदीना" लगाइये, या'नी निगाहें नीची रखने की भरपूर सई़ (या'नी कोशिश) फ़रमाइये । आह ! सद हज़ार आह ! बसा अवक़ात नमाज़ी और रोज़ादार भी माहे रमज़ान की बे हु़र्मती कर के क़हरे क़हहार और ग़ज़बे जब्बार का शिकार हो कर अ़ज़ाबे नार में गिरिफ़्तार हो जाते हैं ।