Safai Ki Ahamiyyat

Book Name:Safai Ki Ahamiyyat

दूंगा । ٭ इजतिमाअ़ के बाद ख़ुद आगे बढ़ कर सलाम व मुसाफ़ह़ा और इनफ़िरादी कोशिश करूंगा ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! दीने इस्लाम ने जहां इन्सान को कुफ़्रो शिर्क की गन्दगी से पाक कर के इ़ज़्ज़तो बुलन्दी अ़त़ा की, वहीं ज़ाहिरो बात़िन की पाकीज़गी की आला तालीमात के ज़रीए़ इन्सानिय्यत का वक़ार भी बुलन्द किया । बदन की पाकीज़गी हो या लिबास की सुथराई, ज़ाहिरी शक्लो सूरत की ख़ूबी हो या त़ौर त़रीके़ की अच्छाई, मकान और साज़ो सामान की सफ़ाई हो या सुवारी की धुलाई । अल ग़रज़ ! हर चीज़ को साफ़ सुथरा रखने की दीने इस्लाम में तालीम और तरग़ीब दी गई है । आइए ! सफ़ाई, सुथराई की अहमिय्यत पर 3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा सुनते हैं :

  1. पाकीज़गी निस्फ़ ईमान है । (مسلم،ص۱۴۰،حدیث:۲۲۳)
  2. बेशक इस्लाम साफ़ सुथरा (दीन) है (जबकि एक रिवायत में है कि अल्लाह पाक ने इस्लाम की बुन्याद सफ़ाई पर रखी है), तो तुम भी नज़ाफ़त ह़ासिल किया करो क्यूंकि जन्नत में वोही शख़्स दाख़िल होगा जो (ज़ाहिरो बात़िन में) साफ़ सुथरा होगा । (کنزالعمال،۵/۱۲۳،حدیث:۲۵۹۹۶، جمع الجوامع، ۴/ ۱۱۵، حدیث: ۱۰۶۲۴، فیض القدیر، ۲/۴۰۹، تحت الحدیث: ۱۹۵۳)
  3. जो लिबास तुम पेहनते हो, उसे साफ़ सुथरा रखो और अपनी सुवारियों की देखभाल किया करो और तुम्हारी ज़ाहिरी शक्लो सूरत ऐसी साफ़ सुथरी हो कि जब लोगों में जाओ, तो वोह तुम्हारी इ़ज़्ज़त करें । (جامع صغیر، ص۲۲، حدیث: ۲۵۷)

          ह़ज़रते अ़ल्लामा अ़ब्दुर्रऊफ़ मुनावी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : इस ह़दीस में इस बात की त़रफ़ इशारा है कि हर वोह चीज़ जिस से इन्सान नफ़रत व ह़क़ारत मह़सूस करे, उस से बचा जाए, ख़ुसूसन साह़िबे इक़्तिदार और उ़लमाए किराम को उन चीज़ों से बचना चाहिए । (فیض القدیر،۱/۲۴۹،تحت الحدیث: ۲۵۷)

          याद रहे ! जब बच्चा इस दुन्या में आता है, तो ख़ून में लतपत होता है, उस के पैदा होने के बाद से ही उस के साथ सफ़ाई का तअ़ल्लुक़ जुड़ जाता है फिर बच्चे के समझदार होने तक उस की सफ़ाई, सुथराई और उसे नफ़ासत पसन्द बनाने की ज़िम्मेदारी उस के वालिदैन व सरपरस्त अदा करते हैं । बालिग़ होने के बाद उस पर इस्लाम के कई ऐसे अह़कामात (मसलन नमाज़ वग़ैरा) लाज़िम होते हैं कि जिन की बिना पर उसे अपने जिस्म और लिबास को पाक साफ़ रखना ज़रूरी है । इसी त़रह़ इन्तिक़ाल के बाद भी शरीअ़त में ग़ुस्ल दे कर दफ़्नाने का ह़ुक्म है । इस्लाम में सफ़ाई, सुथराई की इतनी अहमिय्यत होने के बा वुजूद हमारे मुआ़शरे में एक तादाद सफ़ाई, सुथराई के मुआ़मले में सुस्ती का शिकार है, जिन का लिबास, बिस्तर, जूते, मोज़े, चप्पल, रूमाल, इ़मामा, चादर, कंघी, सुवारी, अल ग़रज़ ! हर वोह चीज़ जो उन के इस्तिमाल में होती है, वोह ब ज़बाने ह़ाल चीख़ चीख़ कर पुकार रही होती है कि मुझे साफ़ किया जाए । बहर ह़ाल अगर इन्सान ख़ुद साफ़ सुथरा और उस के आस पास का माह़ोल भी सफ़ाई वाला हो, तो येह उस के बदन और उस की सोच के सेह़तमन्द बनने में बड़ा मददगार साबित हो सकता है, जब बदन और सोच सेह़तमन्द और दुरुस्त हों, तो आदमी दीनो दुन्या के बे शुमार काम उ़म्दगी (ख़ूबी) के साथ बजा ला सकता है ।