Book Name:Tawakkul aur Qana'at
फ़रमाते हैं : मैं ने रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم को काबा शरीफ़ के सेह़्न में इह़तिबा की सूरत में तशरीफ़ फ़रमा देखा । (بخاری ، ۴ / ۱۸۰ ، حدیث : ۶۲۷۲) इह़तिबा का मत़लब येह है कि आदमी सुरीन के बल बैठे और अपनी दोनों पिन्डलियों को दोनों हाथों के ह़ल्के़ में ले ले । इस क़िस्म का बैठना तवाज़ोअ़ (यानी आ़जिज़ी व इन्केसारी) में शुमार होता है । (बहारे शरीअ़त, 3 / 432, मुलख़्ख़सन) ٭ इस दौरान बल्कि जब भी बैठें, पर्दे की जगह की हैअत व कैफ़िय्यत नज़र नहीं आनी चाहिए । लिहाज़ा “ पर्दे में पर्दा “ के लिए घुटनों से क़दमों तक चादर डाल ली जाए । अगर कुरता सुन्नत के मुत़ाबिक़ हो, तो उस के दामन से भी “ पर्दे में पर्दा “ किया जा सकता है । ٭ ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم जब नमाज़े फ़ज्र पढ़ लेते, चार ज़ानू (यानी चौकड़ी मार कर) बैठे रेहते, यहां तक कि सूरज अच्छी त़रह़ त़ुलूअ़ हो जाता । (ابوداوٗد ، ۴ / ۳۴۵ ، حدیث۴۸۵۰) ٭ जामेए़ करामाते औलिया, पेहली जिल्द के सफ़ह़ा नम्बर 67 पर है : इमाम यूसुफ़ नबहानी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ की दो ज़ानू (यानी जिस त़रह़ नमाज़ में अत्तह़िय्यात में बैठते हैं, इस त़रह़) बैठने की आ़दते करीमा थी । ٭ नमाज़ के बाहर (यानी इ़लावा) भी दो ज़ानू बैठना अफ़्ज़ल है । (मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 90) ٭ रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم उ़मूमन क़िब्ला रू हो कर बैठते थे । (इह़याउल उ़लूम, 2 / 449) ٭ फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم है : मजालिस में सब से मुकर्रम (यानी इ़ज़्ज़त वाली) मजलिस (यानी बैठना) वोह है जिस में क़िब्ले की त़रफ़ मुंह किया जाए । (معجم ا وسط ، ۶ / ۱۶۱ ، حدیث : ۸۳۶۱) ٭ ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُمَا अक्सर क़िब्ले को मुंह कर के बैठते थे । (مقاصد حسنۃ ، ص۸۸) ٭ मुबल्लिग़ और मुदर्रिस के लिए दौराने बयान व तदरीस, सुन्नत येह है कि पीठ क़िब्ले की त़रफ़ रखें ताकि उन से इ़ल्म की बातें सुनने वालों का रुख़ जानिबे क़िब्ला हो सके । चुनान्चे, ह़ज़रते अ़ल्लामा ह़ाफ़िज़ सख़ावी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم क़िब्ले को इस लिए पीठ फ़रमाया करते थे कि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم जिन्हें इ़ल्म सिखा रहे हैं या वाज़ फ़रमा रहे हैं, उन का रुख़ क़िब्ले की त़रफ़ रहे । (مقاصد حسنۃ ، ص۸۸) ٭ ह़ज़रते अनस رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से रिवायत है : रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم को कभी न देखा गया कि अपने हम नशीन के सामने घुटने फैला कर बैठे हों । (ترمذی ، ۴ / ۲۲۱ ، حدیث : ۲۴۹۸) ह़दीसे पाक में “ रुक्बतैन “ (यानी घुटने) का लफ़्ज़ है, इस से मुराद एक क़ौल के मुत़ाबिक़ “ दोनों पाउं “ हैं । जैसा कि ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के तह़त फ़रमाते हैं : यानी ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم कभी किसी मजलिस (यानी बैठक) में किसी की त़रफ़ पाउं फैला कर नहीं बैठते थे, न औलाद की त़रफ़, न अज़्वाजे पाक की त़रफ़, न ग़ुलामों, ख़ादिमों की त़रफ़ । (मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 80) ٭ ह़ज़रते इमामे आज़म अबू ह़नीफ़ा رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं ने कभी अपने उस्तादे मोह़तरम, ह़ज़रते ह़म्माद رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ के मकाने आ़लीशान की त़रफ़ पाउं नहीं फैलाए, उन के एह़तिराम की वज्ह से । आप (यानी उस्ताद साह़िब رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ) के घर मुबारक और मेरी रिहाइश गाह में चन्द गलियों का फ़ासिला होने के बा वुजूद मैं ने कभी उधर पाउं नहीं फैलाए । (مناقب الامام الاعظم ابی حنیفۃ ، حصّہ۲ ، ص۷)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد