Tawakkul aur Qana'at

Book Name:Tawakkul aur Qana'at

मुत्तसिफ़ होते हैं । आइए ! तवक्कुल का जज़्बा बढ़ाने के लिए तवक्कुल करने वालों की दो ह़िकायात सुनते हैं :

शैत़ान मेरा ख़ादिम है

          ह़ज़रते सय्यिदुना अय्यूब ह़म्माल رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ से मन्क़ूल है : हमारे अ़लाके़ में एक मुतवक्किल नौजवान रेहता था । वोह इ़बादतो रियाज़त और तवक्कुल के मुआ़मले में बहुत मश्हूर था । लोगों से कोई चीज़ न लेता, जब भी खाने की ह़ाजत होती, अपने सामने सिक्कों से भरी एक थैली पाता । इसी त़रह़ वोह अपने शबो रोज़ इ़बादते इलाही में गुज़ारता और उसे ग़ैब से रिज़्क़ दिया जाता । एक दफ़्आ़ लोगों ने उस से कहा : ऐ नौजवान ! तू सिक्कों की वोह थैली लेने से डर ! हो सकता है शैत़ान तुझे धोका दे रहा हो और वोह थैली उसी की त़रफ़ से हो । नौजवान ने कहा : मेरी नज़र तो अपने पाक परवर दगार की रह़मत की त़रफ़ होती है, मैं उस के इ़लावा किसी से कोई चीज़ नहीं मांगता, जब मेरा मौला मुझे रिज़्क़ अ़त़ा फ़रमाता है, तो मैं क़बूल कर लेता हूं । बिलफ़र्ज़ अगर वोह सिक्कों की थैली मेरे दुश्मन शैत़ान की त़रफ़ से हो, तो इस में मेरा क्या नुक़्सान ? बल्कि मुझे फ़ाएदा ही है कि मेरा दुश्मन मेरे लिए मुसख़्ख़र कर दिया गया है । अगर वाके़ई़ ऐसा है, तो अल्लाह पाक उसे मेरा ख़ादिम बनाए रखे । इस से ज़ियादा अच्छी बात और क्या हो सकती है कि मेरा सब से बड़ा दुश्मन ख़ादिम बन कर मेरी ख़िदमत करे और मैं उस की त़रफ़ नज़र न रखूं बल्कि येह समझूं कि मेरा परवर दगार मुझे दुश्मन के ज़रीए़ रिज़्क़ अ़त़ा फ़रमा रहा है । वाके़ई़ तमाम जहानों को वोही ख़ालिके़ काइनात रिज़्क़ अ़त़ा फ़रमाता है जो मेरा माबूद है । मुतवक्किल नौजवान की येह बात सुन कर लोग ख़ामोश हो गए और समझ गए कि इस को वाके़ई़ ग़ैब से रिज़्क़ दिया जाता है । (उ़यूनुल ह़िकायात, 2 / 105) इसी त़रह़ तवक्कुल से मुतअ़ल्लिक़ एक और बहुत प्यारी ह़िकायत सुनिए । चुनान्चे,

अनोखी शहज़ादी

          अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की किताब “ फै़ज़ाने सुन्नत “ (जिल्द अव्वल), सफ़ह़ा 501 पर लिखा है : ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ शाह किरमानी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ की शहज़ादी जब शादी के लाइक़ हो गई और पड़ोसी मुल्क के बादशाह के यहां से रिश्ता आया, तब आप ने (वोह रिश्ता) ठुकरा दिया और मस्जिद मस्जिद घूम कर किसी पारसा (नेक) नौजवान को तलाशने लगे । एक नौजवान पर उन की निगाह पड़ी जिस ने अच्छी त़रह़ नमाज़ अदा की और गिड़गिड़ा कर दुआ़ मांगी । शैख़ ने उस से पूछा : तुम्हारी शादी हो चुकी है ? उस ने नफ़ी में जवाब दिया । फिर पूछा : क्या निकाह़ करना चाहते हो ? लड़की क़ुरआने मजीद पढ़ती है, नमाज़, रोज़े की पाबन्द है और ख़ूब सीरत है । उस ने कहा : भला मेरे साथ कौन रिश्ता करेगा ? शैख़ ने फ़रमाया : मैं करता हूं । लो येह कुछ दिरहम, एक दिरहम की रोटी, एक दिरहम का सालन और एक दिरहम की ख़ुश्बू ख़रीद लाओ । इस त़रह़ शाह किरमानी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ ने अपनी दुख़्तरे नेक अख़्तर का निकाह़ उस से पढ़ा दिया । दुल्हन जब दुल्हा के घर आई, तो उस ने देखा पानी की सुराह़ी पर एक रोटी रखी हुई है । उस ने पूछा : येह रोटी कैसी है ? दुल्हा ने कहा : येह कल की बासी रोटी है जो मैं ने इफ़्त़ार के लिए रखी है । येह सुन कर वोह वापस होने लगी । येह देख कर दुल्हा बोला : मुझे मालूम था कि शैख़