Book Name:Tawakkul aur Qana'at
रोटियों पर ही गुज़ारा करता, वोह अपने नफ़्ल रोज़ों के लिए हमारे फ़र्ज़ रोज़ों से भी ज़ियादा उ़म्दा और बेहतरीन इफ़्त़ार का एहतिमाम करने के बजाए क़नाअ़त इख़्तियार करता । हमें भी क़नाअ़त (Contentment) की आ़दत अपनानी चाहिए । आज एक तादाद रिज़्क़ में कमी और माल में बे बरकती का शिकार नज़र आती है, ऐसों को चाहिए कि रिज़्क़ में इज़ाफे़ और बरकत के साथ साथ अपने लिए क़नाअ़त की दौलत मिलने की दुआ़ भी किया करें क्यूंकि क़नाअ़त जिस बन्दे को नसीब हो जाए, उसे दुन्या और जो कुछ इस में है, उस से बे नियाज़ कर देती है । क़नाअ़त बन्दे को ग़ैर के दरवाज़े पर झुकने और किसी के सामने दस्ते सुवाल दराज़ करने से बचा कर सिर्फ़ रज़्ज़ाके़ ह़क़ीक़ी पर भरोसा करना सिखाती है । क़नाअ़त बन्दे में ख़ुद्दारी और ग़ैरत पैदा करती है जबकि ख़्वाहिशात की पैरवी इन्सान को ग़ुलाम बना कर रख देती है ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आइए ! क़नाअ़त की तारीफ़ सुनते हैं : इन्सान को जो कुछ ख़ुदा की त़रफ़ से मिल जाए, उस पर राज़ी हो कर ज़िन्दगी गुज़ारते हुवे लालच के छोड़ देने को “ क़नाअ़त “ केहते हैं । क़नाअ़त की आ़दत इन्सान के लिए ख़ुदा की बहुत बड़ी नेमत है, क़नाअ़त पसन्द इन्सान सुकून की दौलत से माला माल रेहता है जबकि लालची इन्सान हमेशा परेशान रेहता है । (जन्नती ज़ेवर, स. 136, मुलख़्ख़सन)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! यक़ीनन क़नाअ़त आला तरीन इन्सानी सिफ़ात में से बहुत ही प्यारी सिफ़त है । क़नाअ़त करने वाला अपनी ख़्वाहिशात को रोकने में कामयाब हो जाता है जबकि क़नाअ़त से मुंह मोड़ने वाला नफ़्स का ग़ुलाम बन कर हमेशा इधर उधर भटकता रेहता है । क़नाअ़त करने वाले को अल्लाह पाक का शुक्र बजा लाने की तौफ़ीक़ मिलती है जबकि क़नाअ़त से मुंह मोड़ने वाले की अगर एक भी ख़्वाहिश पूरी न हो, तो वोह शिक्वा शिकायत पर उतर आता है । क़नाअ़त करने वाला मज़ीद की ख़्वाहिश के बजाए सब्र के दामन में पनाह लेता है । क़नाअ़त इन्सान की बुलन्द हिम्मती, आ़ली सोच, बुज़ुर्गी, तक़्वा और सब्र की अ़लामत बनती है जबकि ख़्वाहिशात की पैरवी इन्सान की नफ़्स परस्ती, लालच, कन्जूसी और अल्लाह पाक की राह में ख़र्च करने से दूरी का सबब बनती है । क़नाअ़त की अहम्मिय्यत जानने के लिए इतना काफ़ी है कि अल्लाह पाक अपने नेक और मुक़र्रब बन्दों को ही येह पाकीज़ा ख़स्लत (Habit) और आ़दत अ़त़ा फ़रमाता है । तमाम अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام, सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان और औलियाए इ़ज़्ज़ाम رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की मुबारक ज़िन्दगियां हमारे लिए बेहतरीन नुमूना हैं ।
मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की क़नाअ़त पे लाखों सलाम !
हमारे प्यारे आक़ा, काइनात के वाली, दो आ़लम के दाता صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की सारी ज़िन्दगी सब्रो क़नाअ़त से भरी हुई है । आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की ह़याते त़य्यिबा में कहीं भी आराम, ऐ़श और राह़त का सामान नज़र नहीं आता और न कभी आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इन चीज़ों के ह़ुसूल की कोशिश की । आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم को माले ग़नीमत पर मुश्तमिल बड़े बड़े ख़ज़ाने