$header_html

Book Name:Tawakkul aur Qana'at

शाह किरमानी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ की शहज़ादी मुझ ग़रीब इन्सान के घर नहीं रुक सकती । दुल्हन बोली : मैं आप की मुफ़्लिसी के बाइ़स नहीं जा रही बल्कि इस लिए लौट कर जा रही हूं कि रब्बे करीम पर आप का यक़ीन बहुत कमज़ोर नज़र आ रहा है, जभी तो कल के लिए रोटी बचा कर रखते हैं, मुझे तो अपने बाप पर ह़ैरत है कि उन्हों ने आप को पाकीज़ा ख़स्लत और सालेह़ कैसे केह दिया ! दुल्हा येह सुन कर बहुत शर्मिन्दा हुवा और उस ने कहा : इस कमज़ोरी से माज़िरत ख़्वाह हूं । दुल्हन ने कहा : अपना उ़ज़्र आप जानें, अलबत्ता मैं ऐसे घर में नहीं रुक सकती जहां एक वक़्त की ख़ूराक जम्अ़ रखी हो, अब या तो मैं रहूंगी या   रोटी । दुल्हा ने फ़ौरन जा कर रोटी ख़ैरात कर दी और ऐसी दरवैश ख़स्लत अनोखी शहज़ादी का शौहर बनने पर अल्लाह पाक का शुक्र अदा किया । (روضُ الریاحین ص ۱۹۲ ، ملخصاً)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! देखा आप ने ! मुतवक्किलीन की भी क्या ख़ूब अदाएं होती हैं ! शहज़ादी होने के बा वुजूद ऐसा ज़बरदस्त तवक्कुल कि कल के लिए खाना बचाना गवारा ही नहीं ! येह सब यक़ीने कामिल की बहारें हैं कि जिस अल्लाह पाक ने आज खिलाया है, वोह आइन्दा कल भी खिलाने पर यक़ीनन क़ादिर है । चरिन्दे, परिन्दे वग़ैरा कौन सा बचा कर रखते हैं ! एक वक़्त का खा लेने के बाद दूसरे वक़्त के लिए बचा कर रखना इन की फ़ित़रत में ही नहीं । मुर्ग़ी का तवक्कुल मुलाह़ज़ा हो : उस को पानी दीजिए, ह़स्बे ज़रूरत पी चुकने के बाद पियाले पर पाउं रख कर पानी बहा देगी, गोया येह मुर्ग़ी ख़ामोश मुबल्लिग़ा है और हमें नसीह़त कर रही है कि ऐ लोगो ! बरसों का जम्अ़ कर लेने के बा वुजूद भी तुम्हें क़रार नहीं आता ! जबकि मैं एक बार पी लेने के बाद दोबारा के लिए बे फ़िक्र हो जाती हूं कि जिस ने अभी पानी पिलाया है, वोह बाद में भी पिला देगा । काश ! कि हमें भी तवक्कुल की नेमत नसीब हो जाए ।

अफ़्सोस ! आज का बे अ़मल मुसलमान तवक्कुल तो दूर फ़क़त़ एक लुक़्मे के लिए बाज़ अवक़ात क़त्लो ग़ारत गरी तक पहुंच जाता है । ढेरों ढेर मालो दौलत और उ़म्दा ग़िज़ाएं होने के बा वुजूद दूसरों के मालों पर नज़रें जमी होती हैं, रेहने की अच्छी जगहें होने के बा वुजूद दूसरों के बंगलों और कोठियां हथयाने के त़रीके़ सोचता है, कभी दूसरों का माल हथयाने के लिए डकेती और चोरी से काम लेता है, तो कभी धमकियों के ज़रीए़ लोगों के माल पर क़ब्ज़ा जमाता है और उन्हें ख़ौफ़ज़दा करता है । इन सब बातों का बुन्यादी सबब अल्लाह पाक पर तवक्कुल न होना है, ह़ालांकि एक बन्दे के लिए येही बात काफ़ी होनी चाहिए कि जितना उस के नसीब में है, उसे ज़रूर मिल कर रहेगा, वोह रब्बे करीम जो पथ्थरों में मौजूद कीड़ों को रिज़्क़ देने पर क़ादिर है, वोह मेरे पेट के लिए भी अस्बाब बना देगा । अल्लाह करीम के नेक बन्दे दूसरों से उन का माल छीनना तो दूर, दूसरों पर भरोसा करने से भी कतराते हैं । चुनान्चे,

ह़ज़रते सय्यिदुना अबू सई़द ख़राज़ رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं कि मैं एक जंगल में पहुंचा, तो ज़ादे राह कुछ न था, मुझे शदीद भूक का एह़सास हुवा, तो दूर एक बस्ती नज़र आई, मैं ख़ुश हो गया लेकिन फिर अपने ऊपर यूं ग़ौरो फ़िक्र किया कि मैं ने दूसरों पर भरोसा (Trust) किया है और



$footer_html