Ala Hazrat Ki Shayeri Aur Ishq e Rasool

Book Name:Ala Hazrat Ki Shayeri Aur Ishq e Rasool

से आसमान और जन्नत के दरवाज़े खोल दिए गए थे, शैत़ान का मुंह काला हो गया, आ़शिक़ाने रसूल के लिए ई़दों की ई़द है, जो शबे क़द्र से भी अफ़्ज़ल तरीन है ।

          मश्हूर मुह़द्दिस, ह़ज़रते शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिसे देहलवी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : बेशक रसूले अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की विलादत की रात, शबे क़द्र से भी अफ़्ज़ल है क्यूंकि विलादत की रात सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم के दुन्या में तशरीफ़ लाने की रात है जबकि शबे क़द्र, सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم को अ़त़ा कर्दा रात है, तो जो रात रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की ज़ाते पाक के ज़ाहिर होने की वज्ह से शरफ़ वाली हो, वोह उस रात से ज़ियादा शरफ़ व इ़ज़्ज़त वाली है जो फ़िरिश्तों के उतरने के सबब शरफ़ वाली है । (مَا ثَبَتَ بِا لسُّنّۃ،ص۱۵۳)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! हमें चाहिए कि शरीअ़त के दाइरे में रेहते हुवे ख़ुसूसी एहतिमाम के साथ इस दिन (बारहवीं शरीफ़) और बिल ख़ुसूस पूरे रबीउ़ल अव्वल को ही नेक आमाल में गुज़ारें, इस माहे मुक़द्दस में फ़र्ज़ नमाज़ों के साथ साथ नफ़्ल नमाज़ों का एहतिमाम करें । फ़र्ज़ नमाज़ों के साथ साथ नमाज़े तहज्जुद का एहतिमाम करें, इश्राक़ व चाश्त के नवाफ़िल का एहतिमाम करें, नमाज़े अव्वाबीन का एहतिमाम करें, ज़ियादा से ज़ियादा तिलावते क़ुरआन करें, ख़ूब सदक़ा व ख़ैरात करें, मुसलमानों को नेकी की दावत दें, उन्हें गुनाहों से बचाने की कोशिश करें, क़ाफ़िलों में न सिर्फ़ ख़ुद सफ़र करें बल्कि दूसरे इस्लामी भाइयों को भी ले कर जाएं, दावते इस्लामी के हफ़्तावार इजतिमाअ़ में शिर्कत और रबीउ़ल अव्वल शरीफ़ के इब्तिदाई 12 दिनों में होने वाले मदनी मुज़ाकरे देखने, सुनने की कोशिश करें ।

नफ़्ल रोज़ों का एहतिमाम कीजिए

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! यक़ीनन हमारी सांसों का कोई भरोसा नहीं, न जाने कब येह सांसें और इस के साथ ही हमारे आमाल का सिलसिला रुक जाए, हमें नेकियों का कोई मौक़अ़ हाथ से नहीं जाने देना चाहिए । अल्लाह करीम के फ़ज़्लो करम से ज़िन्दगी में एक बार फिर रबीउ़ल अव्वल का मुबारक महीना हमें देखना नसीब हुवा, लिहाज़ा इस के एक एक दिन की क़द्र करते हुवे ख़ूब नेक आमाल कीजिए, रब्बे करीम की रिज़ा व ख़ुशनूदी ह़ासिल करने, रह़मते इलाही के ह़क़दार बनने, बारगाहे मुस्त़फ़ा में सवाब पेश करने की निय्यत से इस महीने की पेहली तारीख़ से बारहवीं तारीख़ तक 12 नफ़्ल रोज़े रखिए, बिल ख़ुसूस बारहवीं को तो रोज़ा रखने की भरपूर कोशिश कीजिए क्यूंकि हमारे प्यारे प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم हर पीर शरीफ़ को रोज़ा रख कर अपना यौमे विलादत मनाते थे । चुनान्चे, ह़ज़रते अबू क़तादा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं : ह़ुज़ूर नबिय्ये रह़मत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की बारगाह में पीर के रोज़े के बारे में पूछा गया । तो इरशाद फ़रमाया : इसी दिन मेरी पैदाइश हुई और इसी रोज़ मुझ पर वह़ी उतरी । (مسلم،کتاب الصیام،باب استحباب صیام ثلاثۃ… الخ،ص۴۵۵،حدیث:۲۷۵۰)