Ala Hazrat Ki Shayeri Aur Ishq e Rasool

Book Name:Ala Hazrat Ki Shayeri Aur Ishq e Rasool

नमाज़, बा जमाअ़त पाने के 7 निकात

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आइए ! अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के तह़रीरी मदनी मुज़ाकरा, क़िस्त़ : 43 "तंग वक़्त में नमाज़ का त़रीक़ा" सफ़ह़ा नम्बर 11 से नमाज़, बा जमाअ़त पाने के तअ़ल्लुक़ से 7 निकात सुनते हैं : (1) अगर त़ूले ख़्वाब (यानी लम्बी नींद) से ख़ौफ़ करता है, तक्या न रख, बिछौना न बिछा कि बे तक्या व बे बिस्तर सोना भी मस्नून (यानी सुन्नत) है । (2) सोते वक़्त दिल को ख़याले जमाअ़त से ख़ूब मुतअ़ल्लिक़ रख कि फ़िक्र की नींद, ग़ाफ़िल नहीं होती । (3) खाना ह़त्तल इमकान अ़लस्सबाह़ (यानी बहुत सवेरे) खा कि वक़्ते नौम (यानी सोने के वक़्त) तक बुख़ाराते त़आ़म फ़रू हो लें (यानी खाने के सबब पैदा होने वाले बोझल असरात ख़त्म हो जाएं) और त़ूले मनाम (यानी लम्बी नींद) के बाइ़स न हों । (4) सब से बेहतर इ़लाज तक़्लीले ग़िज़ा (यानी कम खाना) है, पेट भर कर क़ियामे लैल (यानी रात की इ़बादत) का शौक़ रखना, बांझ (यानी ऐसी औ़रत कि जिस से बच्चा पैदा न हो उस) से बच्चा मांगना है । जो बहुत खाएगा, बहुत पिएगा । जो बहुत पिएगा, बहुत सोएगा । जो बहुत सोएगा, आप ही येह ख़ैरात व बरकात खोएगा । (5) यूं भी न गुज़रे, तो क़ियामे लैल (यानी रात की इ़बादत) में तख़्फ़ीफ़ (कमी) कर, दो रक्अ़तें ख़फ़ीफ़ व ताम, बाद नमाज़े इ़शा ज़रा सोने के बाद शब में किसी वक़्त पढ़नी अगर्चे आधी रात से पेहले, अदाए तहज्जुद को बस (यानी काफ़ी) हैं (यानी इस त़रह़ भी तहज्जुद हो जाएगी), मसलन नव बजे इ़शा पढ़ कर सो रहा, दस बजे उठ कर दो रक्अ़तें पढ़ लीं, तहज्जुद हो गई । (6) सोते वक़्त अल्लाह पाक से तौफ़ीके़ जमाअ़त की दुआ़ और उस पर सच्चा तवक्कुल (यानी भरोसा रखे कि) मौला तबारक व तआ़ला जब तेरा ह़ुस्ने निय्यत व सिद्के़ अ़ज़ीमत (यानी तेरी जमाअ़त पाने की सच्ची निय्यत और सच्चा इरादा) देखेगा, ज़रूर तेरी मदद फ़रमाएगा । وَ مَنْ یَّتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ فَهُوَ حَسْبُهٗ ؕ(پ۲۸، الطلاق :۳) (तर्जमए कन्ज़ुल ईमान : और जो अल्लाह पर भरोसा करे, तो वोह उसे काफ़ी है) । (7) अपने अहले ख़ाना वग़ैरहुम से किसी मोतमद (यानी क़ाबिले एतिमाद) को मुतअ़य्यन कर कि वक़्ते जमाअ़त से पेहले जगा दे । इन सातों तदबीरों के बाद किसी वक़्त सोए, اِنْ شَآءَ اللّٰہ फ़ौते जमाअ़त से मह़फ़ूज़ होगा और अगर शायद इत्तिफ़ाक़ से किसी दिन आंख न भी खुली और जगाने वाला भी भूल गया या सो रहा (जैसा कि ह़ज़रते सय्यिदुना बिलाल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के साथ वाके़अ़ हुवा), तो येह इत्तिफ़ाक़ी उ़ज़्र मस्मूअ़ होगा (यानी इन एह़तियात़ों के बाद कभी इत्तिफ़ाक़ी त़ौर पर आंख न खुली और नमाज़ क़ज़ा हो गई, तो अब गुनाहगार नहीं होगा) और उम्मीद है कि सिद्के़ निय्यत व ह़ुस्ने तदबीर (यानी सच्ची निय्यत और अच्छी कोशिश) पर सवाबे जमाअ़त पाएगा । (फ़तावा रज़विय्या, 7 / 88 ता 91, मुल्तक़त़न)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد