Book Name:Ala Hazrat Ki Shayeri Aur Ishq e Rasool
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : तो वोह लोग जो उस नबी पर ईमान लाएं और उस की ताज़ीम करें और उस की मदद करें और उस नूर की पैरवी करें जो उस के साथ नाज़िल किया गया, तो वोही लोग फ़लाह़ पाने वाले हैं । (तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान, 9 / 347)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने माहे मीलाद ! हम रबीउ़ल अव्वल के फ़ज़ाइल और इस की बरकतों के बारे में सुन रहे थे । रबीउ़ल अव्वल की अ़ज़मतों के क्या केहने ! इसे काइनात की सब से ज़ियादा अ़ज़मतो शान वाली हस्ती यानी प्यारे नबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم से ख़ास निस्बत ह़ासिल है, इसी निस्बत ने इस महीने की शानो अ़ज़मत को चार चांद लगा दिए और इस की बारहवीं रात को नूरानी बना दिया है क्यूंकि इस महीने में रब्बे करीम की सब से बड़ी रह़मत हम गुनाहगारों को नसीब हुई और अपना मह़बूब हमें अ़त़ा फ़रमाया । लिहाज़ा हमें चाहिए कि इस रह़मत मिलने पर अल्लाह पाक का शुक्र अदा करें, उस की रह़मत पर ख़ुशियां मनाएं क्यूंकि रह़मते इलाही मिलने पर ख़ुशी मनाने का ह़ुक्म तो अल्लाह करीम ने ख़ुद इरशाद फ़रमाया है । चुनान्चे, पारह 11, सूरए यूनुस की आयत नम्बर 58 में इरशाद होता है :
قُلْ بِفَضْلِ اللّٰهِ وَ بِرَحْمَتِهٖ فَبِذٰلِكَ فَلْیَفْرَحُوْاؕ-هُوَ خَیْرٌ مِّمَّا یَجْمَعُوْنَ(۵۸)) پ۱۱،یونس:۵۸(
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : तुम फ़रमाओ अल्लाह के फ़ज़्ल और उस की रह़मत पर ही ख़ुशी मनानी चाहिए, येह उस से बेहतर है जो वोह जम्अ़ करते हैं ।
मश्हूर मुफ़स्सिरे क़ुरआन, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ इस आयते मुबारका के तह़त इरशाद फ़रमाते हैं : ऐ मह़बूब ! लोगों को येह ख़ुश ख़बरी दे कर येह ह़ुक्म भी दो कि अल्लाह (पाक) के फ़ज़्ल और उस की रह़मत मिलने पर ख़ूब ख़ुशियां मनाओ । उ़मूमी ख़ुशी तो हर वक़्त मनाओ और ख़ुसूसी ख़ुशी उन तारीख़ों में जिन में येह नेमत आई, यानी रमज़ान में कि अल्लाह (पाक) का फ़ज़्ल "क़ुरआन" आया, रबीउ़ल अव्वल में ख़ुसूसन बारहवीं तारीख़ को रह़मतुल्लिल आ़लमीन, यानी मुह़म्मदे मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم पैदा हुवे । येह फ़ज़्लो रह़मत या उन की ख़ुशी मनाना तुम्हारे दुन्यवी जम्अ़ किए हुवे मालो मताअ़, रुपिया, मकान, जाएदाद, जानवर, खेती बाड़ी बल्कि औलाद वग़ैरा सब से बेहतर है कि इस ख़ुशी का नफ़्अ़ (फ़ाएदा) शख़्सी नहीं बल्कि क़ौमी है, वक़्ती नहीं बल्कि दाइमी (हमेशा के लिए) है, सिर्फ़ दुन्या में नहीं बल्कि दीनो दुन्या दोनों में है, जिस्मानी नहीं बल्कि दिली और रूह़ानी है, बरबाद नहीं बल्कि इस पर सवाब है । (तफ़्सीरे नई़मी, पा. 11, यूनुस, तह़्तुल आयत : 11, 58 / 378, मुलख़्ख़सन)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मालूम हुवा ! माहे रबीउ़ल अव्वल और बिल ख़ुसूस इस मुबारक महीने की बारहवीं तारीख़ बड़ी अ़ज़मत व बरकत वाली है क्यूंकि इसी बारहवीं तारीख़ को कुफ़्रो शिर्क की सारी अन्धेरियां ख़त्म हो गईं, हर त़रफ़ रौशनी ही रौशनी हो गई, ख़ुशी का समां छा गया, ह़ज़रते जिब्रीले अमीन عَلَیْہِ السَّلَام ने काबे की छत पर झन्डा लगाया, ईरान के बादशाह "किस्रा" के मह़ल पर ज़लज़ला आया, उस के मह़ल में दराड़ें पड़ गईं, एक हज़ार साल से जलने वाला आतश कदा (वोह मक़ाम जहां हर वक़्त आग जलती रेहती है) ख़ुद बख़ुद बुझ गया, अल्लाह पाक के ह़ुक्म