Book Name:Qiyamat Ki Alamaat
दुआ़एं क्यूं क़बूल न होंगी । आइए ! तरग़ीब के लिए हफ़्तावार इजतिमाअ़ में ह़ाज़िरी का एक वाक़िआ़ सुनिए और इजतिमाअ़ में पाबन्दी के साथ ह़ाज़िर होने की निय्यत कीजिए । चुनान्चे,
एक इस्लामी भाई बे फ़िक्री और बेबाक त़बीअ़त के मालिक थे, गुनाहों और ग़फ़्लतों की वादियों में गुम थे, टिफ़िन बजा कर बच्चों वाले गीत गाने और नक़्लें उतारने के मुआ़मले में ख़ानदान भर में मश्हूर थे, शादी व दीगर तक़रीबात में मिज़ाह़िय्या चुटकुले और फ़िल्मी ग़ज़लें सुनाना, गाने गाना, नाच
दिखाना और त़रह़ त़रह़ के नख़रों से लोगों को हंसाना उन का पसन्दीदा काम था । स्कूल के ज़माने में एक बा इ़मामा इस्लामी भाई अक्सर उन के बड़े भाई से मिलने आया करते थे, एक दिन बड़े भाई ने इस्लामी भाई से उन का तआ़रुफ़ करवाया, तो इस्लामी भाई ने उन्हें दावते इस्लामी के हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ की दावत पेश की । इस्लामी भाई की दावत पर वोह सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में जा पहुंचे, उन्हें बहुत अच्छा लगा, लिहाज़ा उन्हों ने पाबन्दी से जाना शुरूअ़ कर दिया, اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इजतिमाअ़ में शिर्कत की बरकत से उन्हों ने नमाज़ों की पाबन्दी शुरूअ़ कर दी, आहिस्ता आहिस्ता इ़मामा शरीफ़ भी सज गया, जिस पर घर के बाज़ अफ़राद ने सख़्ती के साथ मुख़ालफ़त की, ह़त्ता कि बसा अवक़ात مَعَاذَ اللّٰہ इ़मामा शरीफ़ खींच कर उतार दिया जाता, दर्स देने से रोका जाता, ज़ुल्फे़ं रखीं, तो घरवालों ने ज़बरदस्ती कटवा दीं, दाढ़ी अभी निकली नहीं थी मगर सजाने की निय्यत कर ली थी, इन तमाम आज़माइशों के बा वुजूद मदनी माह़ोल की कशिश उन्हें दावते इस्लामी के क़रीब से क़रीब तर करती चली गई, मक्तबतुल मदीना से जारी होने वाले सुन्नतों भरे बयानात की केसेटें सुनने से ढारस बंधी और ह़ौसला मिलता चला गया, اَلْحَمْدُ لِلّٰہ ! आहिस्ता आहिस्ता घर में भी मदनी माह़ोल बन गया ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
﴾3﴿...नमाज़ें क़ज़ा करना
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! हम क़ियामत की अ़लामात के बारे में सुन रहे थे । प्यारे आक़ा, मदीने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने क़ियामत की एक निशानी येह भी बयान फ़रमाई है कि लोग नमाज़ें क़ज़ा करेंगे । (التذکرة باحوال الموتی وامورالاخرة، باب اذا فعلت ھذہ الامة…الخ، ص۵۹۷)
आज नमाज़ें क़ज़ा करने के मनाज़िर हमारी आंखों के सामने हैं । अफ़्सोस ! सद अफ़्सोस ! आज हमारे मुआ़शरे में सिर्फ़ सुस्ती और काहिली की वज्ह से आए दिन नमाज़ें क़ज़ा कर दी जाती हैं । एक बहुत बड़ी तादाद है जो नमाज़ें क़ज़ा कर देती है और उन्हें इस की कोई परवा भी नहीं होती । बाज़ लोग तो ऐसे भी हैं कि जब उन की एक या चन्द नमाज़ें रेह जाएं, तो हफ़्तों हफ़्तों बल्कि महीनों महीनों तक जानबूझ कर नमाज़ नहीं पढ़ते और अगर कोई नमाज़ों की तरग़ीब दिलाए, तो केहते हैं : "अब اِنْ شَآءَ اللّٰہ अगले जुम्आ़ से दोबारा नमाज़ें पढ़ना शुरूअ़ करूंगा या रमज़ान से बा क़ाइ़दा नमाज़ों का एहतिमाम करूंगा ।" यूं गोया किसी क़िस्म की शर्म व झिजक के बिग़ैर बड़ी