Qiyamat Ki Alamaat

Book Name:Qiyamat Ki Alamaat

वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا को सवाब पहुंचाने के लिए आ़शिक़ाने रसूल के साथ 3 दिन के क़ाफ़िले में सफ़र की सआ़दत ह़ासिल कीजिए ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

इ़मामे की सुन्नतें व आदाब

          ऐे आ़शिक़ाने रसूल ! आइए ! इ़मामा बांधने की सुन्नतें और आदाब सुनते हैं । पेहले दो फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم मुलाह़ज़ा हों : (1) इरशाद फ़रमाया : इ़मामे के साथ 2 रक्अ़त नमाज़, बिग़ैर इ़मामे की 70 रक्अ़तों से अफ़्ज़ल हैं । (مسند الفردوس،۲/۲۶۵ حدیث:۳۲۳۳) (2) इ़मामे अ़रब के ताज हैं, तो इ़मामा बांधों, तुम्हारा वक़ार बढ़ेगा और जो इ़मामा बांधे, उस के लिए हर पेच पर एक नेकी है । (کَنْزُ الْعُمّال، ۱۵/۱۳۳، رقم: ۴۱۱۳۸)

बहारे शरीअ़त में है : इ़मामा खड़े हो कर बांधे और पाजामा बैठ कर पेहने, जिस ने इस का उलट किया (यानी इ़मामा बैठ कर बांधा और पाजामा खड़े हो कर पेहना) वोह ऐसे मरज़ में मुब्तला होगा जिस की दवा नहीं । ٭ इ़मामे के शिम्ले की मिक़्दार कम अज़ कम चार उंगल और ٭ ज़ियादा से ज़ियादा (आधी पीठ तक यानी तक़रीबन) एक हाथ । (फ़तावा रज़विय्या, 22 / 182) (बीच की उंगली के सिरे से ले कर कोहनी तक का नाप एक हाथ केहलाता है) ٭ इ़मामा क़िब्ले की त़रफ़ खड़े खड़े बांधिए । (کَشْفُ الاِلْتِباس،ص۳۸) ٭ इ़मामे में सुन्नत येह है कि ढाई गज़ से कम न हो, न छे गज़ से ज़ियादा और इस की बन्दिश गुम्बद नुमा हो । (फ़तावा रज़विय्या, 22 / 186) ٭ त़िब्बी तह़क़ीक़ के मुत़ाबिक़ दर्दे सर के लिए इ़मामा शरीफ़ पेहनना बहुत मुफ़ीद है । ٭ इ़मामा शरीफ़ से दिमाग़ को क़ुव्वत मिलती और ह़ाफ़िज़ा मज़बूत़ होता है । ٭ इ़मामा शरीफ़ बांधने से दाइमी नज़्ला नहीं होता या होता भी है, तो उस के असरात कम होते हैं । ٭ इ़मामा शरीफ़ का शिम्ला निचले धड़ के फ़ालिज से बचाता है क्यूंकि शिम्ला ह़राम मग़्ज़ को मौसिमी असरात मसलन सर्दी, गर्मी वग़ैरा से तह़फ़्फु़ज़ फ़राहम करता है ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد