Qiyamat Ki Alamaat

Book Name:Qiyamat Ki Alamaat

          अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ फ़रमाते हैं : वालिदए मोह़तरमा का जुमेरात और जुम्आ़ की दरमियानी रात को इन्तिक़ाल हुवा, मौत के वक़्त मुझे बहुत याद कर रही थीं । बहन ने बताया :اَلْحَمْدُ لِلّٰہ  कलिमए त़य्यिबा और इस्तिग़फ़ार पढ़ने के बाद ज़बान बन्द हुई, बिल ख़ुसूस ग़ुस्ल देने के बाद चेहरा निहायत ही रौशन हो गया था । जिस ह़िस्सए ज़मीन पर रूह़ क़ब्ज़ हुई, उस से कई रोज़ तक ख़ुश्बू आती रही और ख़ुसूसन रात के जिस ह़िस्से में इन्तिक़ाल हुवा था, उस में त़रह़ त़रह़ की ख़ुश्बूएं आती रहीं । सोइम वाले दिन सुब्ह़ के वक़्त चन्द गुलाब के फूल ला कर रखे थे जो शाम तक तक़रीबन तरो ताज़ा रहे, जो मैं ने अपने हाथ से वालिदा की क़ब्र पर चढ़ाए, यक़ीन जानिए उन में ऐसी अ़जीब भीनी भीनी ख़ुश्बू थी कि मैं ह़ैरान रेह गया, कभी गुलाब के फूलों में मैं ने ऐसी ख़ुश्बू नहीं सूंघी थी, न अभी तक सूंघी है बल्कि घन्टों तक वोह ख़ुश्बू मेरे हाथों से भी आती रही । (तज़किरए अमीरे अहले सुन्नत, क़िस्त़ : 2, स. 41, मुल्तक़त़न)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! 20 सफ़रुल मुज़फ़्फ़र को ह़ज़रते दाता अ़ली हजवेरी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ का भी उ़र्से पाक है । आइए ! इसी मुनासबत से आप का मुख़्तसर तआ़रुफ़ सुनते हैं । चुनान्चे,

विलादत व सिलसिलए नसब

          ह़ुज़ूर सय्यिद दाता गंज बख़्श अ़़ली हजवेरी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ की विलादते  बा सआ़दत कमो बेश सिने 400 हिजरी में ग़ज़नी शहर (City) में हुई, कुछ अ़र्से बाद आप का ख़ानदान मह़ल्ला "हजवेर" आ गया, इसी निस्बत से आप "हजवेरी" केहलाते हैं । (उर्दू दाइरतुल मआ़रिफ़, 9 / 91, मुलख़्ख़सन) आप का नाम "अ़ली", वालिद का नाम "उ़स्मान" है । आप का सिलसिलए नसब छे वासित़ों से सय्यिदुश्शुहदा, राकिबे दोशे मुस्त़फ़ा, ह़ज़रते इमाम ह़सने मुज्तबा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से जा मिलता है । (बुज़ुर्गाने लाहौर, स. 222, मुल्तक़त़न) आप की कुन्यत "अबुल ह़सन" है । (उर्दू दाइरतुल मआ़रिफ़, 9 / 91) मश्हूरो मारूफ़ लक़ब "गंज बख़्श" और "दाता साह़िब" है । आप बहुत बड़े आ़लिमे दीन, शैख़े त़रीक़त, इ़बादत गुज़ार और मुत्तक़ी बुज़ुर्ग थे, आप की किताब "कश्फु़ल मह़जूब" दुन्या भर में मश्हूर है, आप का विसाले पुर मलाल 20 सफ़रुल मुज़फ़्फ़र सिने 465 हि. को मर्कज़ुल औलिया, लाहौर (पाकिस्तान) की सरज़मीन पर हुवा और यहीं पर आप का मज़ार शरीफ़ वाके़अ़ है जो दुआ़ओं की क़बूलिय्यत का मर्कज़ है । दाता साह़िब की सीरते मुबारका के ह़वाले से मज़ीद मालूमात ह़ासिल करने के लिए मक्तबतुल मदीना का रिसाला "फै़ज़ाने दाता अ़ली हजवेरी" का मुत़ालआ़ कीजिए ।

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! اَلْحَمْدُ لِلّٰہ ! ख़ुश नसीब आ़शिक़ाने रसूल माहे सफ़र में ह़ज़रते दाता गंज बख़्श رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के उ़र्से मुबारक के मौक़ेअ़ पर और अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا को सवाब पहुंचाने के लिए क़ाफ़िलों में सफ़र की सआ़दत पाते हैं, लिहाज़ा हिम्मत कीजिए, दाता साह़िब رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ और अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की