Book Name:Moasharay Ki Islah
आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी दुन्या भर में कमो बेश 108 शोबाजात में सुन्नतों की धूमें मचाने में मसरूफे़ अ़मल है, इन्ही में से एक "मजलिसे दारुस्सुन्नह" भी है । इस मजलिस के तह़त तरबियत याफ़्ता इस्लामी भाई, इस्लामी भाइयों को और इस्लामी बहनें, इस्लामी बहनों को मुख़्तलिफ़ कोर्सिज़ करवाते हैं, इन कोर्सिज़ में ज़रूरी अ़क़ाइद, नमाज़ के मसाइल, दुरुस्त क़ुरआने करीम पढ़ने के क़वाइ़द, सुन्नतें और आदाब, स्पेशल अफ़राद में मदनी काम करने का त़रीक़ा और मख़्सूस सूरतें वग़ैरा सिखाने का सिलसिला होता है । अल्लाह पाक के करम से अब तक हज़ारों इस्लामी भाई और इस्लामी बहनें इस मजलिस के तह़त मुख़्तलिफ़ कोर्सिज़ करने की सआ़दत ह़ासिल कर चुके हैं । अल्लाह करीम इस शोबे को मज़ीद लगन के साथ दीन की ख़िदमत करते रेहने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
सजदए तिलावत के मसाइल
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आइए ! अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "तिलावत की फ़ज़ीलत" से सजदए तिलावत के चन्द मसाइल सुनते हैं : ٭ आयते सजदा पढ़ने या सुनने से सजदा वाजिब हो जाता है । (ہِدَایۃ،۱/ ۷۸) ٭ फ़ारसी या किसी और ज़बान में (भी अगर) आयत का तर्जमा पढ़ा, तो पढ़ने वाले और सुनने वाले पर सजदा वाजिब हो गया, सुनने वाले ने येह समझा हो या नहीं कि आयते सजदा का तर्जमा है, अलबत्ता येह ज़रूर है कि उसे न मालूम हो, तो बता दिया गया हो कि येह आयते सजदा का तर्जमा था और आयत पढ़ी गई हो, तो इस की ज़रूरत नहीं कि सुनने वाले को आयते सजदा होना बताया गया हो । (फ़तावा हिन्दिया, 1 / 133) ٭ पढ़ने में येह शर्त़ है कि इतनी आवाज़ में हो कि अगर कोई उ़ज़्र न हो, तो ख़ुद सुन सके । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा 4, 1 / 728) ٭ सुनने वाले के लिए येह ज़रूरी नहीं कि ख़ुद इरादा कर के सुनी हो, बिग़ैर इरादे के सुनने से भी सजदा वाजिब हो जाता है । (ہِدایۃ،۱/۷۸) ٭ अगर इतनी आवाज़ से आयत पढ़ी कि सुन सकता था मगर शोर या बेहरा होने की वज्ह से न सुनी, तो सजदा वाजिब हो गया और अगर सिर्फ़ होंट हिले और आवाज़ पैदा न हुई, तो वाजिब न हुवा । (फ़तावा हिन्दिया, 1 / 132) ٭ सजदा वाजिब होने के लिए पूरी आयत पढ़ना ज़रूरी नहीं बल्कि वोह लफ़्ज़ जिस में सजदे का मज़मून पाया जाता है और उस के साथ पेहले या बाद का कोई लफ़्ज़ मिला कर पढ़ना काफ़ी है । (رَدُّالْمُحتار،۲/۶۹۴) ٭ सजदए तिलावत का त़रीक़ा : सजदे का मस्नून त़रीक़ा येह है कि खड़ा हो कर