Book Name:Tabarukat Ki Barakaat
पर ह़ज़रते बिशरे ह़ाफ़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने हाथ रख दिया था, इस लिये मैं ने इसे 20 दिरहम में ख़रीद लिया । उस की बात सुन कर सब ने ख़रबूज़े को चूमा और अपनी अपनी आंखों से लगाया । उन में से एक ने कहा : ह़ज़रते बिशरे ह़ाफ़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ को किस चीज़ ने इस मक़ाम पर पहुंचाया ? किसी ने कहा : तक़्वा ने । सुवाल करने वाले ने कहा : मैं तुम्हें गवाह बना कर अल्लाह पाक से तौबा करता हूं । इस के बाद सब ने उसी की त़रह़ तौबा की फिर वोह सब त़रत़ूस नामी शहर तशरीफ़ ले गए और वहीं शहादत का रुत्बा पा लिया । (الروض الریاحین،ص۲۱۸)
अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपनी किताब "नमाज़ के अह़काम" सफ़ह़ा नम्बर 372 पर तह़रीर फ़रमाते हैं : ह़ज़रते बिशरे ह़ाफ़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ को इन्तिक़ाल के बाद क़ासिम बिन मुनब्बेह ने ख़्वाब में देख कर पूछा : مَا فَعَلَ اللہُ بِکَ؟ यानी अल्लाह पाक ने आप के साथ क्या मुआ़मला फ़रमाया ? जवाब दिया : अल्लाह करीम ने मुझे बख़्श दिया और इरशाद फ़रमाया : तुम को बल्कि तुम्हारे जनाज़े में जो जो शरीक हुवे उन को भी मैं ने बख़्श दिया । तो मैं ने अ़र्ज़ किया : ऐ अल्लाह पाक ! मुझ से मह़ब्बत करने वालों को भी बख़्श दे । तो अल्लाह करीम की रह़मत मज़ीद जोश पर आई और फ़रमाया : क़ियामत तक जो तुम से मह़ब्बत करेंगे, उन सब को भी मैं ने बख़्श दिया । (शर्ह़ुस्सुदूर, स. 289)
ऐ आ़शिक़ाने औलिया ! ग़ौर कीजिये ! ह़ज़रते बिशरे ह़ाफ़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के हाथ लगाए हुवे ख़रबूज़े का अदब करने की वज्ह से उन नौजवानों के दिलों की दुन्या बदल गई, उन्हों ने गुनाहों से तौबा की और शहादत के अ़ज़ीम मर्तबे पर फ़ाइज़ हुवे । इस ह़िकायत से हमें येह सबक़ मिला ! अगर बुज़ुर्गों से निस्बत रखने वाली किसी चीज़ का दिल से एह़तिराम किया जाए, तो बन्दे दीनो दुन्या की सआ़दतों से सरफ़राज़ हो सकते हैं । आज भी जब मसाजिद में, इजतिमाए़ मीलाद में और दीगर मक़ामात पर तबर्रुकात की ज़ियारत होती है, तो लोग मह़ब्बतो अ़क़ीदत से उस में शिर्कत करते हैं और अपनी आंखों को रौशन करते हैं । यूं लोगों में दीन पर अ़मल का जज़्बा बेदार होता है और लोग नेक कामों की त़रफ़ माइल होते हैं ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जिस त़रह़ तबर्रुकात की ताज़ीम और एह़तिराम करने से कई फ़ाइदे मिलते हैं और बरकतें नसीब होती हैं, इसी त़रह़ अगर उन की ताज़ीम न की जाए और उन की बे अदबी व तौहीन की जाए, तो बसा अवक़ात दुन्या में ही इस की सज़ा भी मिल जाती है । इस की सब से वाज़ेह़ मिसाल "ताबूते सकीना" है । चुनान्चे,
मक्तबतुल मदीना की किताब "अ़जाइबुल क़ुरआन मअ़ ग़राइबुल क़ुरआन" के सफ़ह़ा नम्बर 52-53 पर लिखा है : (ताबूते सकीना) शमशाद की लक्ड़ी का एक सन्दूक़ था जो