Book Name:Tabarukat Ki Barakaat
अ़ज़मत वाला हो जाता है । येह भी मालूम हुवा ! जब पथ्थर, नबी के क़दमे मुबारक लगने से अ़ज़मत वाला हो गया, तो ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की अज़्वाजे मुत़ह्हरात, अहले बैत और सह़ाबए किराम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُمْ की अ़ज़मत का क्या कहना ! (लिहाज़ा) इस से तबर्रुकात की ताज़ीम का भी सुबूत (Proof) मिलता है । (सिरात़ुल जिनान, 1 / 205)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
12 मदनी कामों मे से एक मदनी काम "हफ़्तावार मदनी ह़ल्क़ा"
ऐ आ़शिक़ाने औलिया ! वाके़ई़ जो चीज़ भी अल्लाह पाक के नेक लोगों से निस्बत पा जाए, वोह बरकत वाली हो जाती है, लिहाज़ा अल्लाह वालों के दामने करम से वाबस्ता रहिये, तबर्रुकात का ख़ूब ख़ूब अदब कीजिये, उन की ताज़ीम बजा लाइये, उन की बे अदबी से अल्लाह पाक की पनाह त़लब करते रहिये और येह मदनी सोच पाने के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो जाइये और ज़ैली ह़ल्के़ के 12 मदनी कामों में ह़िस्सा लेने वाले बन जाइये । ज़ैली ह़ल्के़ के 12 मदनी कामों में से एक मदनी काम "हफ़्तावार मदनी ह़ल्क़ा" भी है, जिस के ज़रीए़ मुख़्तलिफ़ ज़बान बोलने वालों, शख़्सिय्यात और ताजिरान के लिये अ़लाक़ाई सत़ह़ पर हफ़्तावार मदनी ह़ल्के़ की तरकीब बनाई जाती है, छोटे शहरों में या ऐसे मक़ामात जहां किसी वज्ह से हफ़्तावार इजतिमाअ़ अभी शुरूअ़ नहीं हो पाया, वहां हफ़्तावार मदनी ह़ल्क़ा या मस्जिद इजतिमाअ़ किया जाता है । हफ़्तावार मदनी ह़ल्के़ के जदवल में तिलावत, नात शरीफ़, सुन्नतों भरा बयान, दुआ़ और दुरूदो सलाम शामिल है । किसी भी शहर / अ़लाके़ में एक से ज़ाइद हफ़्तावार मदनी ह़ल्के़ अलग अलग दिनों और मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर लगाए जा सकते हैं । आप भी दीनी कामों में तरक़्क़ी के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मस्जिद भरो तह़रीक दावते इस्लामी का साथ दीजिये । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इस मदनी माह़ोल की बरकत से कई बिगड़े हुवे लोगों की इस्लाह़ हो चुकी है । आइये ! तरग़ीब के लिये एक वाक़िआ़ सुनते हैं । चुनान्चे,
मुल्के अ़त़्त़ार के रिहाइशी इस्लामी भाई आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्तगी से पहले गुनाहों की अन्धेरी वादियों में भटक रहे थे, दुन्या की रंगीनियों में ऐसे गुम थे कि न नमाज़ों का होश था और न क़ब्रो आख़िरत की कोई फ़िक्र, बस दुन्या ही ह़ासिल करना ज़िन्दगी का मक़्सद बन चुका था, यूं ज़िन्दगी के क़ीमती लम्ह़ात दुन्या पाने की ख़ात़िर ज़ाएअ़ हो रहे थे । अल्लाह पाक आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी को सलामत रखे और इसे तरक़्क़ी अ़त़ा फ़रमाए क्यूंकि इस तह़रीक की बरकत से लाखों लाख मुसलमान नेकी के रास्ते पर आ गए हैं । हुवा कुछ यूं कि एक दिन अल्लाह पाक की दी हुई तौफ़ीक़ से नमाज़ पढ़ने के लिये उन्हें मस्जिद में जाना हुवा, नमाज़ की अदाएगी के बाद उन्हें मस्जिद में होने वाले मदनी दर्स (दर्से फै़ज़ाने सुन्नत) में बैठने की सआ़दत मिल गई । दर्स बहुत अच्छा लगा, आख़िर में हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ की