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Book Name:Tabarukat Ki Barakaat

तबर्रुकात से फै़ज़ पाने के वाक़िआ़त का ज़िक्र किया गया है । "ताबूते सकीना" (वोह बरकत वाला सन्दूक़ जिस में अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام के तबर्रुकात रखे जाते थे) से बनी इसराईल का बरकतें लेना, मेह़राबे मरयम में ह़ज़रते ज़करिय्या عَلَیْہِ السَّلَام का दुआ़ मांगना और उस का क़बूल होना तबर्रुकात से बरकतें पाने के येह वोह वाक़िआ़त हैं जो क़ुरआने पाक में बड़ी तफ़्सील से बयान किये गए हैं । आइये ! तबर्रुकात की बरकतें मिलने से मुतअ़ल्लिक़ एक क़ुरआनी वाक़िआ़ सुनते हैं ।

मक़ामे इब्राहीम से तबर्रुक

          मक़ामे इब्राहीम वोह मुबारक पथ्थर है जिस पर अल्लाह पाक के नबी, ह़ज़रते इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام ने अपना क़दमे मुबारक रखा, तो जितना टुक्ड़ा उन के मुबारक क़दमों के नीचे आया, गीली मिट्टी की त़रह़ नर्म हो गया, यहां तक कि ह़ज़रते इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام का क़दमे मुबारक उस में जम गया फिर जब इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام ने क़दम उठाया, अल्लाह पाक ने दोबारा उस टुक्ड़े में पथ्थर की सख़्ती पैदा कर दी कि वोह निशाने क़दम मह़फ़ूज़ रह गया । (फ़तावा रज़विय्या, 21 / 398, मुलख़्ख़सन)

          रब्बे करीम ने रहती दुन्या के तमाम मुसलमानों को मक़ामे इब्राहीम की ताज़ीम करने और उस का क़ुर्ब पाने और उस के क़रीब (Near) नमाज़ पढ़ने का ह़ुक्म इरशाद फ़रमाया । चुनान्चे, अल्लाह पाक पारह 1, सूरतुल बक़रह की आयत नम्बर 125 में इरशाद फ़रमाता है :

وَ اتَّخِذُوْا مِنْ مَّقَامِ اِبْرٰهٖمَ مُصَلًّىؕ-(پ۱،البقرۃ:۱۲۵)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और (ऐ मुसलमानो !) तुम इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज़ का मक़ाम बनाओ ।

        ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मक़ामे इब्राहीम वोह पथ्थर है जिस पर खड़े हो कर इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام ने काबे शरीफ़ की तामीर की, वोह भी ह़ज़रते इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام की बरकत से शआ़इरुल्लाह (अल्लाह पाक की निशानियों में से एक निशानी) बन गया और उस की ताज़ीम ऐसी लाज़िम हो गई कि त़वाफ़ के नफ़्ल उस के सामने खड़े हो कर पढ़ना सुन्नत हो गए । जब बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के क़दम पड़ जाने से सफ़ा, मरवह और मक़ामे इब्राहीम शआ़इरुल्लाह (अल्लाह पाक की निशानियों में से एक निशानी) बन गए और क़ाबिले ताज़ीम हो गए, तो अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام व औलियाए इ़ज़्ज़ाम رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के मज़ारात (Shrines) जिस में येह ह़ज़रात दाइमी (लम्बी मुद्दत के लिये) क़ियाम (आराम) फ़रमा (रहे) हैं, यक़ीनन शआ़इरुल्लाह (अल्लाह पाक की निशानियां) हैं और इन की ताज़ीम (हर एक मुसलमान पर) लाज़िम है । (इ़ल्मुल क़ुरआन, स. 48, मुलख़्ख़सन)

          तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान में लिखा है : इस (आयते मुबारका) से मालूम हुवा ! जिस पथ्थर को नबी की क़दम बोसी (क़दमों को चूमने की सआ़दत) ह़ासिल हो जाए, वोह



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