Tabarukat Ki Barakaat

Book Name:Tabarukat Ki Barakaat

Ø  फै़ज़ाने नमाज़ कोर्स और त़हारत कोर्स : इन दोनों कोर्सिज़ में नमाज़ और त़हारत (पाकी / नापाकी) के मसाइल तफ़्सील से पढ़ाए जाते हैं । इन दोनों कोर्सिज़ की मुद्दत 63 दिन है ।

Ø  फै़ज़ाने ह़ज और फै़ज़ाने उ़मरह कोर्स : ह़ज व उ़मरह की सआ़दत पाने के लिये जाने वाले ख़ुश नसीबों के लिये बहुत ही शानदार कोर्सिज़ हैं जिन में ह़ज और उ़मरह के तफ़्सीली अह़काम और त़रीक़ा सिखाया जाता है । इन कोर्सिज़ की मुद्दत तक़रीबन एक माह और रोज़ाना दरजे का दौरानिया तक़रीबन 30 मिनट है ।

Ø  न्यू मुस्लिम कोर्स : इस्लाम क़बूल करने वाले नए मुसलमानों (New Muslims) के लिये बेहतरीन कोर्स है । इस की मुद्दत 72 दिन है ।

Ø  सुन्नते निकाह़ कोर्स : शादी शुदा और ग़ैर शादी शुदा अफ़राद के लिये बहुत शानदार कोर्स है, जिस में निकाह़ के मसाइल, मियां बीवी के ह़ुक़ूक़, घर अमन का गहवारा कैसे बने ? और बहुत कुछ इस कोर्स में शामिले निसाब है । इस की मुद्दत 30 दिन है ।

          इन कोर्सिज़ के इ़लावा मज़ीद येह कोर्सिज़ भी करवाए जाते हैं : (1) फै़ज़ाने फ़र्ज़ उ़लूम कोर्स । (2) कफ़न दफ़्न कोर्स । (3) फै़ज़ाने रमज़ान कोर्स । (4) फै़ज़ाने ज़कात कोर्स । (5) फै़ज़ाने तसव्वुफ़ कोर्स । (6) अ़रबी ग्रामर कोर्स । (7) फै़ज़ाने शमाइले मुस्त़फ़ा कोर्स और (8) अह़कामे क़ुरबानी कोर्स वग़ैरा । इन में से अक्सर कोर्सिज़ के दरजे का दौरानिया रोज़ाना 30 मिनट और कुछ का 1 घन्टा है । इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने के ख़्वाहिशमन्द

          आ़शिक़ाने रसूल के लिये इन कोर्सिज़ के ज़रीए़ इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने का सुनेहरी मौक़अ़ है । दावते इस्लामी की वेबसाइट www.dawateislami.net से डीपार्टमेन्ट (Department) के ऑप्शन (Option) में जा कर जामिअ़तुल मदीना ऑन लाइन से इस का दाख़िला फ़ॉर्म पुर करें और इ़ल्मे दीन का ख़ज़ाना ह़ासिल करें ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

इ़मामा बांधने की सुन्नतें और आदाब

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आइये ! अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "163 मदनी फूल" से इ़मामा बांधने की चन्द सुन्नतें और आदाब सुनते हैं । पहले दो फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मुलाह़ज़ा हों :

1.      इरशाद फ़रमाया : इ़मामे के साथ दो रक्अ़त नमाज़, बिग़ैर इ़मामे की सत्तर रक्अ़तों से अफ़्ज़ल हैं । (فِرْدَوْس الْاخْبار،۲/۲۶۵ حدیث:۳۲۳۳)

2.      इ़मामे अ़रब के ताज हैं, तो इ़मामा बांधो, तुम्हारा वक़ार बढ़ेगा और जो इ़मामा बांधे, उस के लिये हर पेच पर एक नेकी है । (کَنْزُالْعُمّال، ۱۵/۱۳۳،رقم: ۴۱۱۳۸)

٭ मक्तबतुल मदीना की किताब "बहारे शरीअ़त" जिल्द 3, सफ़ह़ा नम्बर 660 पर है : इ़मामा खड़े हो कर बांधे और पाजामा बैठ कर पहने, जिस ने इस का उल्टा किया (यानी इ़मामा बैठ कर बांधा और पाजामा खड़े हो कर पहना) वोह ऐसे मरज़ में मुब्तला होगा जिस की दवा नहीं । ٭ इ़मामे के शिम्ले की मिक़्दार कम अज़ कम चार उंगल और ज़ियादा