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Book Name:Tabarukat Ki Barakaat

तरग़ीब दिलाई गई, उन्हों ने भी इजतिमाअ़ में शिर्कत की निय्यत कर ली और मुक़र्ररा वक़्त पर सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में पहुंच गए, जहां पर एक नया ही जहान आबाद था, हर त़रफ़ सुन्नतों की बहारें थी, एक अ़जीब समां था, पुरसोज़ बयान और रिक़्क़त अंगेज़ दुआ़ ने उन के दिल की दुन्या बदल दी, उन्हों ने अपने पिछले गुनाहों से तौबा की और मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो गए, सर पर इ़मामा शरीफ़, ज़ुल्फे़ं और चेहरे पर दाढ़ी भी सजा ली ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

बद गुमानी से बचिये

          ऐ आ़शिक़ाने ग़ौसे आज़म ! औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن और अल्लाह पाक के नेक बन्दों से बरकत वाली चीज़ लेने में दिल में कोई शको शुबा नहीं होना चाहिये । दिल में मुख़्तलिफ़ वसाविस को जगह दे कर, इम्तिह़ान लेने और आज़माने की आरज़ू ले कर तबर्रुकात लेने वाले को बसा अवक़ात हाथों हाथ सज़ा भी मिल जाती है । आइये ! इस बात को एक ह़िकायत से समझिये । चुनान्चे,

          अल्लाह पाक के एक वली की ख़िदमत में बादशाहे वक़्त ह़ाज़िर हुवा, उन के पास कुछ सेब किसी की त़रफ़ से तोह़फे़ में आए थे । उन्हों ने एक सेब बादशाह को दिया और कहा : खाओ ! उस ने अ़र्ज़ की : आप भी खाइये ! चुनान्चे, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने भी खाए और बादशाह ने भी । उस वक़्त बादशाह के दिल में ख़याल गुज़रा कि येह जो सब से बड़ा अच्छे रंग का सेब है, अगर अपने हाथ से उठा कर मुझे दे दें, तो मैं जान लूंगा कि येह वली हैं । आप  رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने वोही सेब उठा कर फ़रमाया : हम मिस्र गए थे, वहां एक जगह पर बहुत से लोग जम्अ़ थे, देखा कि एक शख़्स के पास एक गधा है और उस गधे की आंखों पर पट्टी बंधी है, एक शख़्स की एक चीज़ दूसरे के पास रख दी जाती है, उस गधे से पूछा जाता है, गधा सारी मजलिस का दौरा करता है, जिस के पास होती है, जा कर सर टेक देता है । फिर वोह अल्लाह पाक के वली फ़रमाने लगे : येह ह़िकायत हम ने इस लिये बयान की, कि अगर येह सेब न दें, तो हम वली ही नहीं और अगर देंगे, तो उस गधे से बढ़ कर क्या कमाल दिखाया । येह फ़रमा कर सेब बादशाह की त़रफ़ फेंक दिया । (बद गुमानी, स. 35)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ग़ौर कीजिये ! इस ह़िकायत में हमारे लिये भी सीखने को बहुत कुछ है कि हमेशा दूसरों के बारे में अच्छे गुमान से काम लेना चाहिये, अगर कोई अल्लाह पाक का नेक बन्दा वली मश्हूर हो तब भी उस का इम्तिह़ान लेने से बचना चाहिये और हमेशा अच्छा गुमान रखना चाहिये । इसी त़रह़ तबर्रुकात के मुआ़मले में शक नहीं करना चाहिये, अलबत्ता येह याद रहे ! वली शरीअ़त का पाबन्द होता है, अगर लम्बी लम्बी लटों वाला, बहुत सी अंगूठियां पहनने वाला, बे नमाज़ी शख़्स हमें किसी मज़ार के बाहर मिल जाए, तो वोह वली कैसे हो सकता है ? येह भी याद रहे ! वली आ़लिम होता है । आप दाता साह़िब, ख़्वाजा साह़िब, ग़ौसे पाक (رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن) बल्कि किसी भी मश्हूर बुज़ुर्ग



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