Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi

Book Name:Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi

1.      अल्लाह पाक के लिये, उस की किताब के लिये, उस के रसूल के लिये, मुसलमानों के इमामों और अ़वाम के लिये । (مسلم،کتاب الایمان،باب بیان الدین النصیحۃ، ص۵۱ ،حدیث: ۱۹۶)

          बयान कर्दा आख़िरी ह़दीसे पाक के तह़त ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : अल्लाह (पाक) के लिये नसीह़त येह है कि ٭ अल्लाह पाक की ज़ात व सिफ़ात के मुतअ़ल्लिक़ ख़ालिस इस्लामी अ़क़ीदा रखना । ٭ ख़ुलूसे दिल से (यानी इख़्लास के साथ) उस की इ़बादत करना । ٭ उस के मह़बूबों से मह़ब्बत (करना) । ٭ (उस के) दुश्मनों से अ़दावत (यानी दुश्मनी) रखना । ٭ उस के मुतअ़ल्लिक़ अपने अ़क़ीदे ख़ालिस रखना । किताबुल्लाह यानी क़ुरआने मजीद की नसीह़त येह है कि ٭ इस के किताबुल्लाह (यानी अल्लाह पाक का कलाम) होने पर ईमान रखना । ٭ इस की तिलावत करना । ٭ इस में ब क़दरे त़ाक़त (अपनी त़ाक़त के मुत़ाबिक़) ग़ौर करना । ٭ इस पर सह़ीह़ अ़मल करना । अल्लाह (पाक) के रसूल यानी ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की नसीह़त येह है कि ٭ इन्हें तमाम नबियों का सरदार मानना । ٭ इन की तमाम सिफ़ात का एतिराफ़ करना । ٭ जानो माल व औलाद से ज़ियादा इन्हें प्यारा रखना । ٭ इन की इत़ाअ़त व फ़रमां बरदारी करना । ٭ इन का ज़िक्र बुलन्द करना । इमामों से मुराद या तो इस्लामी बादशाह (और) इस्लामी ह़ुक्काम हैं या उ़लमाए दीन, मुज्तहिदीन, कामिलीने औलिया (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن) हैं । इन की नसीह़त येह है कि ٭ इन के हर जाइज़ ह़ुक्म की ब क़दरे त़ाक़त (अपनी त़ाक़त के मुत़ाबिक़) तामील करना (यानी मानना) । ٭ लोगों को इन की इत़ाअ़ते जाइज़ा (जाइज़ फ़रमां बरदारी) की त़रफ़ रग़बत देना । ٭ अइम्मए मुज्तहिदीन (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن) की तक़्लीद करना । ٭ इन के साथ अच्छा गुमान रखना । ٭ उ़लमा का अदब करना । आ़म मुसलमानों की नसीह़त (यानी ख़ैर ख़्वाही) येह है कि ( ब क़दरे त़ाक़त (अपनी त़ाक़त के मुत़ाबिक़) उन की ख़िदमत करना । ٭ उन से दीनी व दुन्यावी मुसीबतें दूर करना । ٭ उन से मह़ब्बत करना । ٭ उन में इ़ल्मे दीन फैलाना । ٭ नेक आमाल की रग़बत देना । ٭ जो चीज़ अपने लिये पसन्द न करे, उन के लिये पसन्द न करना । (मिरआतुल मनाजीह़, 6 / 557, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही करने के बड़े फ़ज़ाइल हैं, येही वज्ह है कि हमारे बुज़ुर्गों के दिलों में उम्मत की ख़ैर ख़्वाही और ग़म ख़्वारी का जज़्बा कूट कूट कर भरा हुवा था, वोह मुक़द्दस हस्तियां लोगों की ख़ैर ख़्वाही करते और अपने दिलों को राह़त (Comfort) पहुंचाते थे । चुनान्चे,

एक शराबी को फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की नसीह़त

          अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने एक मरतबा मुल्के शाम के एक बहादुर शख़्स को तलाश किया लेकिन वोह न मिला । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को बताया गया कि वोह शख़्स शराब का आ़दी हो गया है । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने (पैग़ामात) लिखने वाले से फ़रमाया : लिखो ! उ़मर बिन ख़त़्त़ाब की त़रफ़ से फ़ुलां के नाम ! तुम पर सलामती उतरे !