Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi

Book Name:Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi

v मक़रूज़ के साथ नर्मी करना ख़ैर ख़्वाही है । फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ है : जो मोह़्ताज को मोह्लत दे या उस का क़र्ज़ मुआ़फ़ कर दे, अल्लाह पाक उसे दोज़ख़ की गर्मी से मह़फ़ूज़ फ़रमाएगा । (مسندامام احمد،مسند عبداللہ بن عباس،۱/۷۰۰، حدیث: ۳۰۱۷)

v इन्तिक़ाल पर मय्यित के घर वालों से ताज़ियत करना ख़ैर ख़्वाही है । फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ है : जो ग़म में मुब्तला किसी शख़्स से ताज़ियत करेगा, अल्लाह पाक उसे तक़्वा का लिबास पहनाएगा और रूह़ों के दरमियान उस की रूह़ पर रह़मत फ़रमाएगा और जो मुसीबत में मुब्तला शख़्स से ताज़ियत करेगा, अल्लाह पाक उसे जन्नत के जोड़ों में से 2 ऐसे जोड़े पहनाएगा जिन की क़ीमत (सारी) दुन्या भी नहीं हो सकती । (معجم اوسط،من اسمہ ھاشم، ۶/ ۴۲۹ ، حدیث: ۹۲۹۲)

          अल्लाह पाक हमें ख़ैर ख़्वाही करने वाला बनाए और ख़ैर ख़्वाही का ज़ेहन अ़त़ा करने वाली आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्तगी नसीब फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

मेहमान नवाज़ी की सुन्नतें और आदाब

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आइये ! अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "क़ब्र का इम्तिह़ान" से मेहमान नवाज़ी के बारे में निकात सुनते हैं । पहले 2 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मुलाह़ज़ा हों :

1.     इरशाद फ़रमाया : जो अल्लाह पाक और क़ियामत पर ईमान रखता है, उसे चाहिये कि वोह मेहमान का एह़तिराम करे । (بُخاری،۴/۱۰۵،حدیث:۶۰۱۸)

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के तह़त फ़रमाते हैं : मेहमान का एह़तिराम येह है कि उस से ख़न्दा पेशानी (अच्छे अख़्लाक़) से मिले, उस के लिये खाने और दूसरी ख़िदमात का इन्तिज़ाम करे, ह़त्तल इमकान अपने हाथ से उस की ख़िदमत करे । (मिरआतुल मनाजीह़, 6 / 52)

2.     इरशाद फ़रमाया : जब कोई मेहमान किसी के यहां आता है, तो अपना रिज़्क़ ले कर आता है और जब उस के यहां से जाता है, तो साह़िबे ख़ाना के गुनाह बख़्शे जाने का सबब होता है । (کَنْزُ الْعُمّال، ۹/۱۰۷، حدیث:۲۵۸۳۱)

٭ जब आप किसी के पास मेहमान बन कर जाएं, तो मुनासिब है कि अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ ह़ैसिय्यत के मुत़ाबिक़ मेज़बान या उस के बच्चों के लिये तोह़्फे़ लेते जाइये । ٭ बहारे शरीअ़त के मुसन्निफ़, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मेहमान को चार बातें ज़रूरी हैं : (1) जहां बिठाया जाए, वहीं बैठे । (2) जो कुछ उस के सामने पेश किया जाए उस पर ख़ुश हो, येह न हो कि कहने लगे : इस से अच्छा तो मैं अपने ही घर खाया करता हूं या इसी क़िस्म के दूसरे अल्फ़ाज़ । (3) बिग़ैर इजाज़ते साह़िबे ख़ाना (यानी मेज़बान से इजाज़त लिये बिग़ैर) वहां से न उठे और (4) जब वहां से जाए, तो उस के लिये दुआ़ करे । (फ़तावा हिन्दिया, 5 / 344) ٭ घर या खाने वग़ैरा के