Book Name:Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! اِنْ شَآءَ اللّٰہ आज हम मदनी आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की दुख्यारी उम्मत की ख़ैर ख़्वाही के तअ़ल्लुक़ से बुज़ुर्गाने दीन बिल ख़ुसूस अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की ख़ैर ख़्वाहिये उम्मत के कुछ वाक़िआ़त सुनेंगे ।
फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की एक ख़ानदान की ख़ैर ख़्वाही
एक रात अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ मदीनए मुनव्वरा का दौरा फ़रमा रहे थे कि एक ख़ैमे पर नज़र पड़ी, जब क़रीब गए, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को किसी के तक्लीफ़ में मुब्तला होने की आवाज़ आई । उस ख़ैमे के बाहर एक शख़्स बैठा हुवा था । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने सलाम के बाद उस से ह़ाल पूछा, तो मालूम हुवा कि वोह तो ख़लीफ़ए वक़्त से ही मिलने आया है, अलबत्ता उसे येह मालूम नहीं था कि ख़लीफ़ए वक़्त उस के सामने खड़े हैं । बहर ह़ाल उस ने बताया कि उस की ज़ौजा यानी बीवी उम्मीद से है और बच्चे की पैदाइश का वक़्त क़रीब है । अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ अपने घर तशरीफ़ लाए और अपनी ज़ौजए मोह़तरमा, ह़ज़रते उम्मे कुल्सूम बिन्ते अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا से फ़रमाया : क्या तुम सवाब कमाना चाहती हो ? अल्लाह पाक ने उसे ख़ुद तुम तक पहुंचाया है । उन्हों ने अ़र्ज़ की : हु़ज़ूर क्या बात है ? आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने फ़रमाया : एक औ़रत के बच्चे की विलादत का वक़्त क़रीब है और उस के पास कोई भी नहीं है । अ़र्ज़ की : अगर आप राज़ी हैं, तो मैं चलती हूं । फ़रमाया : ठीक है ! तुम ज़रूरी सामान ले लो । जब वहां पहुंचे, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने अपनी ज़ौजा को अन्दर भेज दिया और ख़ुद उस शख़्स के पास बैठ गए । उस से फ़रमाया : आग जलाओ । उस ने आग जलाई, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने हांडी उस के ऊपर रख दी । जब हांडी तय्यार हो गई, तो दूसरी त़रफ़ बच्चे की विलादत भी हो गई । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की ज़ौजा (Wife) ने अन्दर से आवाज़ दी : ऐ अमीरुल मोमिनीन ! अपने साथी को बेटे की ख़ुश ख़बरी दे दीजिये । जैसे ही उस शख़्स ने लफ़्ज़ "अमीरुल मोमिनीन" सुना, तो डर गया और आ़जिज़ी के साथ थोड़ा सा पीछे हट कर बैठ गया । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने फ़रमाया : जैसे बैठे थे, वैसे ही बैठे रहो । फिर आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने हांडी उठा कर अपनी ज़ौजा को दी और फ़रमाया : ख़ातून को पेट भर कर खिलाओ । फिर आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने उस शख़्स को भी खाने के लिये दिया और फ़रमाया : कल सुब्ह़ मेरे पास आना, मैं तुम्हारी ज़रूरिय्यात को पूरा कर दूंगा । जब वोह शख़्स सुब्ह़ आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के पास आया, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने उस के बच्चे का वज़ीफ़ा (ख़र्चा) भी जारी किया और उसे भी माल वग़ैरा अ़त़ा फ़रमाया । (التبصرۃ ، المجلس التاسع والعشرون فی فضل۔۔۔الخ،۱/۴۲۰)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि अमीरुल मोमिनीन, फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने किस त़रह़ नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की दुख्यारी उम्मत के एक परेशान ह़ाल की ख़ैर ख़्वाही फ़रमाई, अपनी निगरानी में आग रौशन करवाई, अपने हाथों से हांडी चढ़ाई और खाने का इन्तिज़ाम किया फिर ख़ुद ही खाना निकाल कर अपनी ज़ौजए मोह़तरमा के ज़रीए़ उस औ़रत के लिये भेज कर उन की मुश्किल आसान फ़रमाई ।