Book Name:Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ख़ैर ख़्वाही की तारीफ़ करते हुवे फ़रमाते हैं : इस्ति़लाह़ में किसी की ख़ालिस ख़ैर ख़्वाही करना जिस में बद ख़्वाही (बुरा चाहने) का शाइबा (शको शुबा) न हो या ख़ुलूसे दिल (यानी इख़्लास) से किसी का भला चाहना नसीह़त (यानी ख़ैर ख़्वाही) है । (मिरआतुल मनाजीह़, 6 / 557)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही की बहुत सी सूरतें हैं, मसलन मुसलमानों के साथ नर्मी व भलाई से पेश आना, उन की माली मदद करना, उन की परेशानी दूर करना, उन्हें कपड़े पहनाना, उन्हें खाना खिलाना, उन्हें आराम व सुकून पहुंचाना, उन की ज़रूरिय्यात को पूरा करना, शरई़ रहनुमाई करना या करवा देना, भटके हुवों को सीधा रास्ता दिखाना, अल ग़रज़ ! किसी भी अन्दाज़ से अपने मुसलमान भाई के साथ ख़ैर ख़्वाही करना सवाब का काम है । अफ़्सोस ! आज कल लोग "या शैख़ ! अपनी अपनी देख" के तह़त सिर्फ़ अपने मुआ़मलात सुल्झाने की फ़िक्र में रहते हैं । उन के आस पास कितने ही मुसलमान किसी न किसी परेशानी में मुब्तला होंगे मगर उन्हें उन का कोई एह़सास नहीं होता । बाज़ लोगों के अपने जानने वाले क़रीबी अफ़राद जैसे रिश्तेदार, पड़ोसियों वग़ैरा में से कितने लोग ग़ुर्बत और त़रह़ त़रह़ की परेशानियों में जकड़े हुवे होते हैं मगर उन्हें उन की कोई परवा नहीं होती । कितने बीमारों की रातों की नींद और दिन का सुकून पैसा न होने की वज्ह से बरबाद हो रहा है, इस त़रफ़ भी अकसरिय्यत की तवज्जोह ही नहीं होती ।
याद रखिये ! एक अच्छा मुसलमान वोही होता है जो अपने लिये पसन्द करे, वोही अपने मुसलमान भाई के लिये भी पसन्द करे । आइये ! अपने अन्दर दुख्यारी उम्मत की ख़ैर ख़्वाही का जज़्बा बेदार करने के लिये 3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनते हैं । चुनान्चे,
1. इरशाद फ़रमाया : लोगों के लिये भी वोही पसन्द करो, जो अपने लिये पसन्द करते हो, जो अपने लिये ना पसन्द करते हो, उसे दूसरों के लिये भी ना पसन्द करो, जब तुम बोलो, तो अच्छी बात करो या ख़ामोश रहो । (مسند احمد بن حنبل ، حدیث معاذ بن جبل،۸/۲۶۶،حدیث:۲۲۱۹۳)
2. इरशाद फ़रमाया : मोमिन उस वक़्त तक अपने दीन में रहता है जब तक अपने मुसलमान भाई की ख़ैर ख़्वाही चाहता है और जब उस की ख़ैर ख़्वाही से अलग हो जाता है, तो उस से तौफ़ीक़ की नेमत छीन ली जाती है । (فردوس الاخبارللدیلمی،باب اللام الف،۲/۴۲۹، حدیث:۷۷۲۲)
इरशाद फ़रमाया : दीन मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही ही है । सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! किस के लिये ? इरशाद फ़रमाया :