Book Name:Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को उम्मत की ख़ैर ख़्वाही का कैसा जज़्बा था कि मुसलमानों के अमीर और मुसलमानों के ख़लीफ़ा होने के बा वुजूद लोगों के घरों में जा कर उन के घरेलू काम तक कर दिया करते थे । अल्लाह करे कि मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही का येह जज़्बा हमें भी नसीब हो जाए और हम भी मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही के लिये हर वक़्त तय्यार रहने वाले बन जाएं ।
याद रखिये ! किसी मुसलमान की तक्लीफ़ दूर करना और मुश्किल वक़्त में उस की मदद करना बड़ी सआ़दत की बात है, लिहाज़ा अपने घर वालों, रिश्तेदारों, साथ उठने, बैठने वालों, काम काज करने वालों समेत अपने किसी भी मुसलमान भाई को चाहे उसे जानते हों या न जानते हों, किसी परेशानी में मुब्तला पाएं, तो अल्लाह पाक की रिज़ा की ख़ात़िर अपनी त़ाक़त के मुत़ाबिक़ उन की मदद ज़रूर कीजिये, इस की बरकत से सवाब के साथ साथ اِنْ شَآءَ اللّٰہ एक पुर अमन मुआ़शरा बनाने में भरपूर मदद मिलेगी ।
दावते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "मुन्तख़ब ह़दीसें" सफ़ह़ा नम्बर 231 पर इस ह़दीसे पाक : "اَلدِّیْنُ نَصِیْحَۃٌ" यानी दीन मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही ही है । (مسلم،کتاب الایمان،باب بیان الدین النصیحۃ،ص۵۱،حدیث:۱۹۶) के तह़त लिखा है : दूसरों का भला चाहना और हर मुसलमान के साथ ख़ैर ख़्वाही करना । इस के मफ़्हूम में बड़ी कुशादगी है और ह़क़ीक़त तो येह है कि हर मुसलमान की ख़ैर ख़्वाही येह एक ऐसा नेक अ़मल है कि अगर हर मुसलमान इस तालीमे नुबुव्वत को अपनी जान से भी ज़ियादा अ़ज़ीज़ बना कर इस पर अ़मल शुरूअ़ कर दे, तो एक दम मुसलमानों के बिगड़े हुवे मुआ़शरे की ह़ालत बदल जाए और मुस्लिम मुआ़शरा आराम व राह़त और सुकून व इत़मीनान का एक ऐसा नुमूना बन जाए कि दुन्या ही में जन्नत के सुकून व इत़मीनान का जल्वा नज़र आने लगे ।
ज़ाहिर है कि जब हर मुसलमान अपनी ज़िन्दगी का येह मक़्सद बना लेगा कि मैं हर मुसलमान की ख़ैर ख़्वाही करूंगा, तो हर क़िस्म के धोके, नुक़्सान, ज़ुल्म, ह़सद, लड़ाई, झगड़ा, दुश्मनी, नफ़रत, बुरा चाहने और तक्लीफ़ पहुंचाने जैसी तमाम बुरी आ़दतों (Features) का ख़ातिमा हो जाएगा और हर मुसलमान अपने मुसलमान भाइयों के लिये फ़ाइदा देने वाले कामों के इ़लावा न कुछ कर सकेगा, न कुछ सोच सकेगा, न कोई मुसलमान किसी मुसलमान के साथ धोका करेगा, न चुग़ली, न ग़ीबत करेगा और न ही इल्ज़ाम लगाएगा, न ज़ुल्म के किसी पहलू को अपने दिल में आने देगा, न किसी के बनते हुवे काम में रुकावटें खड़ी करेगा बल्कि वोह सब का भला चाहेगा और सब के साथ भलाई करेगा, जिस का क़ुदरती नतीजा येह निकलेगा कि लोग भी उस की ख़ैर ख़्वाही और भलाई करेंगे और वोह भी हर नुक़्सान से मह़फ़ूज़ रहेगा और हमेशा उस का भला होता रहेगा । (मुन्तख़ब ह़दीसें, स. 231, मुलख़्ख़सन)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد