Book Name:Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi
जिल्द अव्वल और "फै़ज़ाने सुन्नत" जिल्द दुवुम के इन अब्वाब : (1) "ग़ीबत की तबाहकारियां" और (2) "नेकी की दावत" से मस्जिद, चौक, बाज़ार, दुकान, दफ़्तर और घर वग़ैरा में दर्स देने को तन्ज़ीमी इस्ति़लाह़ में "मदनी दर्स" कहते हैं ।
٭ मदनी दर्स की बरकत से मस्जिद की ह़ाज़िरी की बार बार सआ़दत नसीब होती है । ٭ मदनी दर्स की बरकत से मुत़ालए़ का मौक़अ़ मिलता है । ٭ मदनी दर्स की बरकत से मुसलमानों से मुलाक़ात व सलाम की सुन्नत आ़म होती है । ٭ मदनी दर्स की बरकत से अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के मुख़्तलिफ़ मौज़ूआ़त पर मुश्तमिल कुतुबो रसाइल से इ़ल्मे दीन से माला माल क़ीमती निकात उम्मते मुस्लिमा तक पहुंचाए जा सकते हैं । ٭ मदनी दर्स, बे नमाज़ियों को नमाज़ी बनाने में बहुत मददगार है । ٭ घर दर्स, घर वालों की इस्लाह़ का बेहतरीन ज़रीआ़ है । ٭ चौक दर्स, मस्जिद की ह़ाज़िरी से मह़रूम रहने वालों तक भी नेकी की दावत पहुंचाने का एक मुफ़ीद तरीन ज़रीआ़ है । ٭ मस्जिद के साथ साथ चौक, बाज़ार, दुकान वग़ैरा में अगर मदनी दर्स होगा, तो इस की बरकत से दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल की मश्हूरी व नेक नामी होगी । ٭ मदनी दर्स की बरकत से अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की मुख़्तलिफ़ कुतुबो रसाइल का तआ़रुफ़ (Introduction) आ़म होगा । आइये ! मदनी दर्स की एक ईमान अफ़रोज़ ह़िकायत सुनिये । चुनान्चे,
मदनी दर्स में बैठने वाला आ़लिम बन गया
बाबुल इस्लाम के एक इस्लामी भाई जो नवीं (9th) क्लास में पढ़ते थे और दुन्या ह़ासिल करने की कोशिशों में मश्ग़ूल थे । अ़लाके़ के इस्लामी भाई उन को नेकी की दावत दे कर मस्जिद में ले आए, जब वोह नमाज़ पढ़ कर मस्जिद से जाने लगे, तो एक ख़ैर ख़्वाह इस्लामी भाई (जो मस्जिद के दरवाज़े के क़रीब खड़े थे) ने उन को दर्स में शिर्कत की दावत दी, लिहाज़ा वोह मदनी दर्स (दर्से फै़ज़ाने सुन्नत) में बैठ गए फिर उन्हों ने इस्लामी भाइयों की इनफ़िरादी कोशिश से मद्रसतुल मदीना (बालिग़ान) में पढ़ना शुरूअ़ कर दिया, हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शिर्कत की । चन्द हफ़्तों बाद अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ का ब ज़रीआ़ टेलीफ़ोन बयान रीले हुवा, बयान के बाद अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने इजतिमाई़ तौबा और बैअ़त करवाई, तो वोह इस्लामी भाई भी गुनाहों से तौबा कर के अ़त़्त़ारी बन गए । मदनी माह़ोल की बरकत से उन्हों ने इ़ल्मे दीन सीखने के लिये सिने 1999 ई़. में जामिअ़तुल मदीना (फै़ज़ाने उ़स्माने ग़नी, बाबुल मदीना) में दाख़िला ले लिया और सिने 2005 ई़. में आ़लिमे दीन बनने पर उन्हें प्यारे प्यारे मुर्शिदे करीम, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के हाथों से दस्तारे फ़ज़ीलत के त़ौर पर इ़मामा शरीफ़ बंधवाने का शरफ़ भी मिल गया ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد