Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi

Book Name:Dukhyari Ummat Ki Khairkhuwahi

मैं तुम्हारे बारे में अल्लाह पाक का शुक्र गुज़ार हूं जिस के इ़लावा कोई इ़बादत के लाइक़ नहीं, जो गुनाहों को बख़्शने वाला, तौबा क़बूल करने वाला, सख़्त सज़ा देने वाला, और बड़े इनआ़म वाला है, उस के इ़लावा कोई इ़बादत के लाइक़ नहीं, उसी की त़रफ़ लौट कर जाना है । फिर आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने उस के ह़क़ में दुआ़ की, कि अल्लाह पाक इसे बीमारी से शिफ़ा अ़त़ा फ़रमा दे, इस के दिल को फेर दे, इस को तौबा की तौफ़ीक़ अ़त़ा कर दे । जब नुमाइन्दा वोह ख़त़ ले कर उस के पास पहुंचा । उस शख़्स ने ख़त़ पढ़ा, तो कहने लगा : मेरा रब्बे करीम गुनाहों को बख़्शने वाला है, यक़ीनन अल्लाह पाक ने मेरी मग़फ़िरत का मुझ से वादा फ़रमा लिया है और वोही तौबा को क़बूल करने वाला है, उस की पकड़ बड़ी सख़्त है, अल्लाह पाक ने मुझे अपने अ़ज़ाब से डराया है, वोह बड़े इनआ़म वाला है और उस का इनआ़म बड़ी भलाई है, उस के इ़लावा कोई इ़बादत के लाइक़ नहीं, उसी की त़रफ़ लौट कर जाना है । वोह बार बार येही कहता रहा, यहां तक कि ज़ारो क़ित़ार रोने लगा फिर उस ने शराब पीने से सच्ची पक्की तौबा की और उसे बिल्कुल छोड़ दिया । जब अमीरुल मोमिनीन ह़ज़रते फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को येह ख़बर मिली, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने फ़रमाया : तुम लोग भी इसी त़रह़ किया करो ! जब तुम देखो कि तुम्हारा कोई भाई फिसल गया है, तो उसे सीधे रास्ते पर लाने की कोशिश करो और उस की त़रफ़ ख़ुसूसी तवज्जोह करो, उस के लिये दुआ़ करो कि अल्लाह पाक उसे तौबा की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए और उस के ख़िलाफ़ शैत़ान के मददगार न बना करो । (حلیۃ الاولیاء، یزید بن الاصم، ۴/۱۰۲)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़े आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ लोगों की दीनी तरबिय्यत और उन की इस्लाह़ के बारे में कैसी कोशिश फ़रमाते थे । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ख़लीफ़ए वक़्त और बेह़द मसरूफ़िय्यात के बा वुजूद अपनी मजलिस में आने वाले एक एक फ़र्द की ग़ैर ह़ाज़िरी को फ़ौरन मह़सूस कर के उसे नज़र अन्दाज़ नहीं करते थे बल्कि उस के बारे में पूछ गछ फ़रमाया करते ताकि अगर उस के साथ कोई मस्अला (Problem) पेश आ गया हो, तो उसे ह़ल कर के ख़ैर ख़्वाही का सवाब ह़ासिल करें । बिलफ़र्ज़ अगर वोह बीमार हो गया है, तो उस का इ़लाज कराएं ताकि वोह तन्दुरुस्त हो जाए, किसी परेशानी में मुब्तला है, तो उस की परेशानी दूर करें मगर आह ! आज हमारी ह़ालत तो येह है कि एक तादाद है जो ग़ैर तो क्या, अपने सगे भाइयों तक की कोई ख़ैर ख़बर नहीं लेते । हमारे साथ उठने बैठने वाले, ऑफ़िस में काम करने वाले, दोस्तों या ख़ादिमीन वग़ैरा में से कोई ग़ैर ह़ाज़िर हो जाए, तो हमें मालूम ही नहीं होता कि वोह कहां है ? और क्यूं नहीं आ रहा ? और न ही हम कोशिश करते हैं कि उस की कोई ख़ैरिय्यत मालूम कर लें कि कहीं उस बेचारे के साथ कोई आज़माइशी मुआ़मला तो नहीं आ गया ? कहीं वोह बीमार तो नहीं हो गया ? काश ! हम भी सीरते फ़ारूक़ी पर अ़मल और मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही करने वाले बन जाएं । अगर हमारे साथ रहने वाला, साथ काम करने वाला, साथ नमाज़ें पढ़ने वाला, नेकी की दावत देने वाला, अ़लाक़ाई दौरा में शिर्कत करने वाला, दर्सो बयान सुनने वाला, मदनी मुज़ाकरे की पाबन्दी करने वाला, हफ़्तावार