Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah

Book Name:Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! मदीने शरीफ़ का ज़िक्रे ख़ैर होते ही मदीने के आ़शिक़ों के दिल ख़ुशी से झूम उठते हैं, चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है, ख़ुशी की कैफ़िय्यत बन जाती है, कुछ की आंखें यादे मदीना में अश्कबार हो जाती हैं, रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के दीवाने जुदाई में तड़पते हैं, शौक़ के आ़लम में ज़बान पर बे इख़्तियार "मदीना मदीना" की रट लग जाती है । मदीने शरीफ़ की अ़ज़मत व फ़ज़ीलत का अन्दाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जिस प्यारे प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से हम बे पनाह मह़ब्बत करते हैं, ख़ुद वोह आक़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मदीने से बहुत मह़ब्बत किया करते हैं । लिहाज़ा मह़ब्बते रसूल का तक़ाज़ा येह है कि हम भी न सिर्फ़ मीठे मदीने की मह़ब्बत बल्कि मदीने के कूचा व बाज़ार की मह़ब्बत, वहां के गुलशन व सह़रा की मह़ब्बत, उस के दरो दीवार की मह़ब्बत, उस के फूल ह़त्ता कि उस के कांटे तक की मह़ब्बत अपने दिल में बसाए रखें, उस की याद में तड़पें और उस की बा अदब ह़ाज़िरी की न सिर्फ़ आरज़ू करें बल्कि अल्लाह करीम से इस की दुआ़एं भी मांगें । आइये ! मदीने के फ़ज़ाइल, ख़ुसूसिय्यात और मदीनए पाक के बा'ज़ मक़ामाते मुक़द्दसा के बारे में सुनते हैं । पहले एक ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़ सुनिये । चुनान्चे,

दरे रसूल पर ह़ाज़िर होने वाला बख़्शा गया

          ह़ज़रते सय्यिदुना मुह़म्मद बिन ह़र्ब हिलाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : एक बार मैं रौज़ए रसूल पर ह़ाज़िर था कि एक आ'राबी (अ़रब के देहात का रहने वाला) आया और बारगाहे रिसालत में इस त़रह़ अ़र्ज़ गुज़ार हुवा : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ! अल्लाह पाक ने आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم पर जो सच्ची किताब उतारी है, उस में (पारह 5, सूरतुन्निसा की) येह आयत भी मौजूद है :

وَ لَوْ اَنَّهُمْ اِذْ ظَّلَمُوْۤا اَنْفُسَهُمْ جَآءُوْكَ فَاسْتَغْفَرُوا اللّٰهَ وَ اسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُوْلُ لَوَجَدُوا اللّٰهَ تَوَّابًا رَّحِیْمًا(۶۴)

(پ۵،النسآء :۶۴)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अगर जब वोह अपनी जानों पर ज़ुल्म कर बैठे थे, तो ऐ ह़बीब ! तुम्हारी बारगाह में ह़ाज़िर हो जाते फिर अल्लाह से मुआ़फ़ी मांगते और रसूल (भी) उन की मग़फ़िरत की दुआ़ फ़रमाते, तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़बूल करने वाला, मेहरबान पाते ।

          ऐ मेरे आक़ा व मौला ! मैं अल्लाह पाक से अपने गुनाहों की मुआ़फ़ी त़लब करते हुवे ह़ाज़िरे दरबार ह़ू और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم को अल्लाह पाक की बारगाह में अपने लिये सिफ़ारिश करने वाला बनाता हूं । येह कह कर वोह आ़शिके़ रसूल रोने लगा और उस की ज़बान पर येह अश्आ़र जारी थे :

فَطَابَ مِنْ طِیْبِہِنَّ الْقَاعُ وَالْاَ  کَمْ     یَا خَیْرَ مَنْ دُفِنَتْ بِالْقَاعِ اَعْظُمُہٗ

فِیْہِ الْعِفَافُ وَ فِیْہِ  الْجُوْدُ  وَ الْکَرَمْ     رُوْحِی الْفِدَاءُ  لِقَبْرٍ  اَنْتَ  سَاکِنُہٗ

तर्जमा : ऐ वोह बेहतरीन ज़ात ! जिस का मुबारक वुजूद इस ज़मीन में दफ़्न किया गया, तो इस की उ़म्दगी और पाकीज़गी से मैदान और टीले ख़ुश्बूदार हो गए । मेरी जान फ़िदा हो इस क़ब्रे अन्वर पर जिस में आप