Book Name:Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah
मदीनए मुनव्वरा की 14 ख़ुसूसिय्यात
(1) ज़मीन का कोई ऐसा शहर नहीं जिस के मुबारक नाम इतने ज़ियादा हों जितने मदीने शरीफ़ के हैं, ह़त्ता कि बा'ज़ उ़लमाए किराम ने इस के 100 नाम तह़रीर फ़रमाए हैं । (2) मदीनए पाक ऐसा पाकीज़ा शहर है जिस की मह़ब्बत और याद में दुन्या में सब से ज़ियादा ज़बानों और ता'दाद में क़सीदे लिखे गए, लिखे जा रहे और लिखे जाते रहेंगे । (3) प्यारे नबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इस की त़रफ़ हिजरत की और यहीं तशरीफ़ फ़रमा रहे । (4) अल्लाह पाक ने इस का नाम त़ाबा रखा । (5) मोह़तरम नबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ जब सफ़र से वापस तशरीफ़ लाते, तो मदीने शरीफ़ के क़रीब पहुंच कर उस से मह़ब्बत और शौक़ की वज्ह से अपनी सुवारी तेज़ कर देते । (6) मदीने शरीफ़ में आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का मुबारक दिल सुकून पाता । (7) यहां की धूल मिट्टी अपने चेहरए अन्वर से साफ़ न फ़रमाते और सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان को भी इस से मन्अ़ फ़रमाते और इरशाद फ़रमाते : ख़ाके मदीना में शिफ़ा है । (जज़्बुल क़ुलूब, स. 22) (8) जब कोई मुसलमान ज़ियारत की निय्यत से मदीने शरीफ़ आता है, तो फ़िरिश्ते रह़मत के तोह़फ़ों से उस का इस्तिक़्बाल करते हैं । (जज़्बुल क़ुलूब, स. 211) (9) रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने मदीने शरीफ़ में मरने की तरग़ीब इरशाद फ़रमाई । (10) यहां मरने वाले की प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ शफ़ाअ़त फ़रमाएंगे । (11) जो वुज़ू कर के आए और मस्जिदे नबवी शरीफ़ में नमाज़ अदा करे, उसे ह़ज का सवाब मिलता है । (12) हु़जरए मुबारका और मिम्बरे पाक के दरमियान की जगह जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ (या'नी जन्नत की कियारी) है । (13) मस्जिदे नबवी शरीफ़ में एक नमाज़ पढ़ना, पचास हज़ार नमाज़ों के बराबर है । (ابن ماجہ،۲ /۱۷۶، حدیث: ۱۴۱۳) (14) मदीने शरीफ़ की सर ज़मीन पर मज़ारे मुस्त़फ़ा है जहां सुब्ह़ो शाम सत्तर सत्तर हज़ार फ़िरिश्ते ह़ाज़िर होते हैं । (आ़शिक़ाने रसूल की 130 ह़िकायात मअ़ मक्के मदीने की ज़ियारतें, स. 259 ता 262, मुल्तक़त़न)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
सरकार صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने खाना खिलाया
ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम यूसुफ़ बिन इस्माई़ल नबहानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ नक़्ल करते हैं : ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अबुल अ़ब्बास अह़मद बिन नफ़ीस तूनिसी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं एक बार मदीनए मुनव्वरा में सख़्त भूक के आ़लम में नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم के मज़ारे पुर अन्वार पर ह़ाज़िर हो कर अ़र्ज़ गुज़ार हुवा : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ! मैं भूका हूं । अचानक आंख लग गई, किसी ने जगा दिया और मुझे साथ चलने की दा'वत दी । चुनान्चे, मैं उन के साथ उन के घर आया । मेज़बान ने खजूरें, घी और गन्दुम की रोटी पेश कर के कहा : पेट भर कर खा लीजिये क्यूंकि मुझे मेरे जद्दे अमजद और रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने आप की मेज़बानी का हु़क्म दिया है, आइन्दा भी जब कभी भूक मह़सूस हो, हमारे पास तशरीफ़ लाया करें । (حُجَّۃُ اللہ عَلَی الْعٰلَمِین ،ص۵۷۳)