Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah

Book Name:Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah

ढाल रखें, जैसे ऊंट का कोहान । (दफ़्न के बा'द) इस  पर पानी छिड़कना बेहतर है । क़ब्र एक बालिश्त ऊंची हो या मा'मूली सी ज़ाइद । (बहारे शरीअ़त, 1 / 846, मुलख़्ख़सन) ٭ दफ़्न के बा'द क़ब्र पर अज़ान देना कारे सवाब (सवाब का काम) और मय्यित के लिये निहायत नफ़्अ़ बख़्श (फ़ाइदा देने वाला) है । (फ़तावा रज़विय्या, 5 / 370, माख़ूज़न) ٭ मुस्तह़ब येह है कि दफ़्न के बा'द क़ब्र पर सूरए बक़रह का अव्वल व आख़िर पढ़ें । सिरहाने (या'नी सर की जानिब) الٓمّٓ ता مُفْلِحُوْن तक और पाइंती (या'नी पाउं की त़रफ़) اٰمَنَ الرَّسُوۡلُ से ख़त्मे सूरत तक पढ़ें । (बहारे शरीअ़त, 1 / 846) ٭ शजरह या अ़ह्द नामा क़ब्र में रखना जाइज़ है और बेहतर येह है कि मय्यित के मुंह के सामने क़िब्ले की जानिब त़ाक़ खोद कर उस में रखें बल्कि "दुर्रे मुख़्तार" में कफ़न पर अ़ह्द नामा लिखने को जाइज़ कहा है और फ़रमाया : इस से मग़फ़िरत की उम्मीद है । ٭ मय्यित के सीने और पेशानी पर بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ लिखना जाइज़ है । यूं भी हो सकता है कि पेशानी पर बिस्मिल्लाह शरीफ़ लिखें और सीने पर कलिमए त़य्यिबा لَآ اِلٰہَ اِلَّا اللہُ مُحَمَّدٌ رَّسُوْلُ اللہِ صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मगर नहलाने के बा'द कफ़न पहनाने से पेश्तर (पहले) कलिमे की उंगली से लिखें, रौशनाई (Ink) से न लिखें । (बहारे शरीअ़त, 1 / 848) ٭ क़ब्र से मय्यित की हड्डियां बाहर निकल पड़ें, तो उन हड्डियों को दफ़्न करना वाजिब है । (फ़तावा रज़विय्या, 9 / 406, माख़ूज़न)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد