Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah

Book Name:Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah

          और रहा मदीना छोड़ कर तुम्हारे साथ जाना, तो इस की भी कोई सूरत नहीं क्यूंकि फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ है : मदीना उन के लिये बेहतर है, अगर वोह समझें । (مسلم، کتاب الحج، باب فضل المدینۃ، حدیث:۱۳۶۳، ص۷۱۰) एक रिवायत में है : मदीना (गुनाहों के) मैल को ऐसे छुड़ाता है जैसे भट्टी लोहे का ज़ंग दूर करती है । (مسلم، کتاب الحج، باب المدینۃ تففی شرارھا،حدیث:۱۳۸۱، ص۷۱۶۔حلیۃ الاولیاء،مالک بن انس، ، حدیث:۸۹۴۲، ج۶، ص۳۶۱) फिर आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने ख़लीफ़ा हारूनुर्रशीद से फ़रमाया : येह रहे तुम्हारे दीनार ! चाहो तो इन्हें ले लो और चाहो तो छोड़ दो, या'नी तुम मुझे इसी वज्ह से मदीना छोड़ने पर पाबन्द करते हो कि तुम ने मेरे साथ अच्छा सुलूक किया है, तो (सुनो !) मैं मदीने शरीफ़ पर दुन्या को तरजीह़ नहीं देता । (इह़याउल उ़लूम, 1 / 113, मुलख़्ख़सन)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुह़म्मद इल्यास क़ादिरी دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ को कई मरतबा सफ़रे ह़ज व सफ़रे मदीना की सआ़दत ह़ासिल हुई, जिन में मजमूई़ त़ौर पर जो कैफ़िय्यत रही उसे पूरी त़रह़ तो बयान नहीं किया जा सकता, अलबत्ता आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के एक सफ़रे मदीना के मुख़्तसर अह़वाल सुनते हैं । चुनान्चे,

अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ का सफ़रे मदीना

          जब मदीनए पाक की त़रफ़ आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की रवानगी की मुबारक घड़ी आई, तो एयरपोर्ट (Airport) पर आ़शिक़ाने रसूल आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ को अल वदाअ़ कहने के लिये मौजूद थे । मदीने के दीवानों ने आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ को ह़ल्के़ (या'नी दाइरे) में ले कर ना'तें पढ़ना शुरूअ़ कर दीं, इ़श्के़ रसूल में डूबी हुई ना'तों ने आ़शिक़ाने मदीना की इ़श्क़ की आग को मज़ीद भड़का दिया, ग़मे मदीना में उठने वाली आहों और सिस्कियों से फ़ज़ा सोगवार हुई जा रही थी, ख़ुद आ़शिके़ मदीना, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की कैफ़िय्यत बड़ी अ़जीब थी, आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की आंखों से आंसू जारी थे, बिल आख़िर इसी आ़लम में सफ़रे मदीना का आग़ाज़ हुवा । जैसे जैसे मन्ज़िल क़रीब आती रही, आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के इ़श्क़ की शिद्दत भी बढ़ती रही, उस पाक सर ज़मीन पर पहुंचते ही आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने जूते उतार लिये । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ उस पाक सर ज़मीन के आदाब का इस क़दर ख़याल रखते कि सिने 1406 हि. के सफ़रे ह़ज में आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की त़बीअ़त नासाज़ थी, सख़्त नज़्ला हो गया, नाक से शिद्दत के साथ पानी बह रहा था, इस के बा वुजूद आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने कभी भी मदीनए पाक की सर ज़मीन पर नाक नहीं सिन्की बल्कि आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की हर अदा से अदब ज़ाहिर होता रहा । जब तक मदीने शरीफ़ में रहे ह़त्तल इमकान गुम्बदे ख़ज़रा को पीठ न होने दी । (तआ़रुफे़ अमीरे अहले सुन्नत, स. 32 ता 34, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد