Book Name:Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आइये ! मदीने शरीफ़ की ह़ाज़िरी का एक ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़ सुनते हैं ।
ऐ ज़ाइरे रौज़ए अन्वर ! मग़फ़िरत याफ़्ता लौट जाओ
ह़ज़रते सय्यिदुना ह़ातिमे असम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم के रौज़ए अन्वर पर ह़ाज़िरी दे कर येह दुआ़ की : या अल्लाह ! मैं ने तेरे
ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की क़ब्रे अन्वर की ज़ियारत की, अब तू मुझे ना मुराद न लौटा । आवाज़ आई : ऐ बन्दे ! हम ने तुम्हें अपने मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की पाकीज़ा क़ब्रे अन्वर की ज़ियारत की इजाज़त ही तब दी जब तुम्हें पाक करना मन्ज़ूर किया, अब तुम और तुम्हारे साथ ज़ियारत करने वाले मग़फ़िरत याफ़्ता लौट जाओ ! बेशक अल्लाह पाक तुम से और उन से राज़ी हो गया जिन्हों ने प्यारे नबी, मुह़म्मद صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم के रौज़ए अन्वर का दीदार किया । (الروض الفائق،ص۳۰۶)
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आप ने सुना कि आक़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के रौज़ए अन्वर की ज़ियारत करना किस क़दर सआ़दत व बरकत का बाइ़स है कि रौज़ए अन्वर की ज़ियारत करने वालों को बारगाहे इलाही से मग़फ़िरत के परवाने तक़्सीम किये जाते हैं, तो कितने ख़ुश नसीब हैं वोह आ़शिक़ाने रसूल जो मदीनए पाक की ह़ाज़िरी का शरफ़ पा चुके, जिन्हों ने सब्ज़ सब्ज़ गुम्बद के ह़सीन जल्वों को देख कर अपने कलेजे ठन्डे किये, जिन्हों ने मस्जिदे नबवी के दिलकश मनारों की ज़ियारत का जाम पिया, जिन्हों ने आक़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के मिम्बरो मेह़राब को अपने सर की आंखों से देखने का ए'ज़ाज़ ह़ासिल किया । यक़ीनन यादे मदीना उन्हें अब भी बे क़रार रखती होगी, जब वोह तसावीर में उन मनाज़िर को देखते होंगे, तो उन की आंखें अश्कबार हो जाती होंगी, दिल बेक़ाबू होने लगता होगा ।
ऐ काश ! रब्बे करीम उन आ़शिक़ाने रसूल के त़ुफै़ल हम गुनाहगारों को भी ह़ाज़िरिये मदीना की सआ़दत अ़त़ा फ़रमा दे । ऐ काश ! आक़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ हमें भी अपने क़दमों में बुला लें । ऐ काश ! हमें भी सब्ज़ सब्ज़ गुम्बद के पुरनूर जल्वे देखना नसीब हो जाएं । ऐ काश ! हमें भी सुनेहरी जालियों के सामने खड़े हो कर दुरूदो सलाम पढ़ने की सआ़दत नसीब हो जाए । ऐ काश ! हमें भी ईमानो आ़फ़िय्यत के साथ मीठे मदीने में मौत और जन्नतुल बक़ीअ़ में दो गज़ ज़मीन नसीब हो जाए ।
याद रहे ! मदीने शरीफ़ में मरना और जन्नतुल बक़ीअ़ में दफ़्न होना बहुत बड़ी सआ़दत मन्दी की बात है । जैसा कि :
नबिय्ये रह़मत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया :مَنِِ اسْتَطَاعَ اَنْ يَّمُوتَ بِالْمَدِينَةِ فَلْيَمُتْ بِهَا तुम में से जिस से हो सके कि वोह मदीने में मरे, तो मदीने ही में मेरे, فَاِنِّي اَشْفَعُ لِمَنْ يَمُوْتُ بِهَا क्यूंकि मैं मदीने में मरने वाले की शफ़ाअ़त करूंगा । (ترمذی ،کتاب المناقب،باب فی فضل المدینۃ،۵/۴۸۳، حدیث: ۳۹۴۳)