Book Name:Madinah Kay Fazail Ma Yaad-e-Madinah
صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم आराम फ़रमा हैं, जिस में पाक दामनी, सख़ावत और अ़फ़्वो करम का बहुत बड़ा ख़ज़ाना है ।
वोह आ़शिके़ रसूल काफ़ी देर तक इन अश्आ़र को दोहराता रहा फिर अपने गुनाहों की मुआ़फ़ी मांगता हुवा रोती हुई आंखों से वहां से रुख़्सत हो गया । ह़ज़रते सय्यिदुना मुह़म्मद बिन ह़र्ब हिलाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब मैं सोया, तो ख़्वाब में सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की ज़ियारत नसीब हुई । आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने मुझ से इरशाद फ़रमाया : उस आ'राबी से मिलो, उसे ख़ुश ख़बरी सुनाओ कि अल्लाह पाक ने मेरी सिफ़ारिश की वज्ह से उस की मग़फ़िरत फ़रमा दी है । (معجم ابن عساکر،ص۶۰۱ ،۶۰۰ملخّصًا)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! "जो रोता है उस का काम होता है" की खुली ह़क़ीक़त बयान कर्दा ह़िकायत से हमारे सामने वाज़ेह़ हो गई कि उस आ'राबी का रोना, करीम आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के दरबार में तड़पना, रह़ीम आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को पुकारना, मेहरबान आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की बारगाहे अक़्दस में आंसू बहाना काम आ गया और प्यारे नबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने उसे मग़फ़िरत की ख़ुश ख़बरी अ़त़ा फ़रमा दी । मा'लूम हुवा ! बारगाहे मुस्त़फ़ा से आज भी मग़फ़िरत के परवाने तक़्सीम होते हैं, आज भी गुनाहगारों को दामने रह़मत में छुपाया जाता है, आज भी बे सहारों की बिगड़ियां बनती हैं, आज भी ग़म के मारों के ग़म दूर किये जाते हैं और आज भी ख़ाली झोलियां भरी जाती हैं ।
दुन्या में आज ऐसे कई लोग मौजूद होंगे जिन के पास बे इन्तिहा मालो दौलत है, जिन्हों ने दुन्या भर की सैर भी की होगी मगर आह ! आ़शिक़ाने रसूल के मर्कज़े अ़क़ीदत "मदीनए मुनव्वरा" और उस के ह़सीन मक़ामात की ज़ियारत से मह़रूम होंगे जब कि दूसरी जानिब वोह आ़शिक़ाने रसूल भी होंगे जिन के पास मदीने शरीफ़ जाने के लिये न तो माल था और न ही जाने के अस्बाब मगर ज़ियारते मदीना के लिये उन का रोना, उन की सच्ची तड़प, मुसल्सल दुआ़एं और मुख़्लिसाना कोशिशें रंग लाईं, अस्बाब बनते चले गए और बिल आख़िर उन्हें भी मदीनए पाक और सब्ज़ सब्ज़ गुम्बद की ज़ियारत का जाम पीना नसीब हो गया ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! मदीनए त़य्यिबा वोह बरकत व अ़ज़मत वाला मुक़द्दस व मोह़तरम मक़ाम है, जो वहां जाता है उस का वापस आने को जी नहीं चाहता क्यूंकि मदीनए त़य्यिबा में हमारे प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का रौज़ए अन्वर और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से मन्सूब बे शुमार यादगारें मौजूद हैं, मदीनए त़य्यिबा में ऐसा दिली सुकून मिलता है जो दुन्या के किसी शहर और किसी ख़ूब सूरत मक़ाम पर भी नहीं मिलता । लिहाज़ा अगर कभी मदीने शरीफ़ जाते हुवे कोई परेशानी आ जाए या मदीनए त़य्यिबा में कोई तक्लीफ़ इस्तिक़्बाल करे, तो सब्र कर के सआ़दत समझ कर उसे क़बूल कर लेना चाहिये कि वहां तक्लीफ़ पर सब्र करने वालों के लिये अल्लाह पाक के मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने अपनी शफ़ाअ़त की ख़ुश ख़बरी अ़त़ा फ़रमाई है । चुनान्चे,