Book Name:Shan-e-Sayedatuna Aisha Siddiqah
ह़ज़रते सय्यिदा उम्मे दुर्रा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا फ़रमाती हैं : मैं ह़ज़रते सय्यिदा आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के पास मौजूद थी, उस वक़्त एक लाख दिरहम कहीं से आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के पास आए, आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا ने उसी वक़्त उन सब दिरहमों को लोगों में तक़्सीम कर दिया और एक दिरहम भी घर में बाक़ी नहीं छोड़ा । उस दिन मैं और वोह रोज़े से थीं । मैं ने अ़र्ज़ की : आप ने सब दिरहमों को तक़्सीम कर दिया और एक दिरहम भी बाक़ी नहीं रखा कि गोश्त ख़रीद कर रोज़ा इफ़्त़ार कर लेतीं ? इरशाद फ़रमाया : तुम ने अगर मुझ से पहले कहा होता, तो मैं एक दिरहम का गोश्त मंगवा लेती । (شرح زرقانی علی المواہب، حضرت عائشۃ ام المؤمنین ،۴/۳۸۹- ۳۹۲)
ऐ आ़शिक़ाने औलिया ! ह़बीबए ह़बीबे ख़ुदा, उम्मुल मोमिनीन, सय्यिदा आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا का शुमार अल्लाह पाक की उन मुक़र्रब तरीन वलिय्यात में होता है जिन की सारी ज़िन्दगी इ़बादतो रियाज़त में गुज़री । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ जिस त़रह़ हम गुनाहगारों की शफ़ाअ़त फ़रमाने वाले रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पांचों नमाज़ों के इ़लावा नमाज़े इशराक़, नमाज़े चाश्त, तह़िय्यतुल वुज़ू, तह़िय्यतुल मस्जिद, सलातुल अव्वाबीन वग़ैरा नवाफ़िल अदा फ़रमाते थे, रातों को उठ उठ कर नमाज़ें अदा फ़रमाते थे, तमाम उ़म्र नमाज़े तहज्जुद के पाबन्द रहे, इसी त़रह़ उम्मुल मोमिनीन, सय्यिदा आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا भी घर के काम काज और नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ख़िदमत गुज़ारी के साथ साथ पाबन्दी के साथ नमाज़े तहज्जुद और नमाज़े चाश्त की अदाएगी का भी एहतिमाम फ़रमाया करती थीं । चुनान्चे,
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "सीरते मुस्त़फ़ा" के सफ़ह़ा नम्बर 660 पर लिखा है : इ़बादत में भी आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا का रुत्बा बहुत ही बुलन्द है । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के भतीजे, ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम क़ासिम बिन मुह़म्मद बिन अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُم का बयान है : ह़ज़रते सय्यिदा आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا नमाज़े तहज्जुद पढ़ने की पाबन्द थीं और अक्सर रोज़े से रहा करती थीं । (सीरते मुस्त़फ़ा, स. 660, मुलख़्ख़सन)
आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا नमाज़े चाश्त की आठ रक्अ़तें पढ़ती थीं फिर फ़रमातीं : अगर मेरे मां-बाप उठा भी दिये जाएं तब भी मैं येह रक्अ़तें न छोड़ूं । (مؤطّا امام مالک،کتاب قصر الصلاۃ فی السفر ،باب صلاۃ الضُّحی،ص۱۵۳،حدیث:۳۶۶)
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बयान कर्दा दूसरी ह़दीसे पाक के तह़्त फ़रमाते हैं : या'नी अगर इशराक़ के वक़्त मुझे ख़बर मिले कि मेरे वालिदैन ज़िन्दा हो कर आ गए हैं, तो मैं उन की मुलाक़ात के लिये येह नफ़्ल न छोड़ूं