Shan-e-Sayedatuna Aisha Siddiqah

Book Name:Shan-e-Sayedatuna Aisha Siddiqah

बल्कि पहले येह नफ़्ल पढ़ूं फिर उन की क़दम बोसी करूं (या'नी उन के क़दम चूमूं) । (मिरआतुल मनाजीह़, 2 / 299)

          سُبْحٰنَ اللّٰہ ! उम्मुल मोमिनीन, सय्यिदा आ़इशा सिद्दीक़ा, आ़बिदा, ज़ाहिदा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا का नफ़्ल इ़बादात का जज़्बा मरह़बा ! ज़रा ग़ौर फ़रमाइये ! जिन की शान क़ुरआने करीम में बयान हुई, जिन के फ़ज़ाइलो कमालात को अह़ादीसे मुबारका में बयान किया गया, जो अपने वक़्त की आ़लिमा, मुफ़्तिया, फ़क़ीहा, मुह़द्दिसा और मुफ़स्सिरा कहलाईं, बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن ने जिन की शानो अ़ज़मत के डंके बजाए, फ़राइज़ तो फ़राइज़, तहज्जुद और चाश्त के नवाफ़िल को छोड़ना भी उन्हें गवारा न था मगर आज कई मुसलमानों की ह़ालत येह है कि नफ़्ल नमाज़ तो दूर की बात है, उन से तो फ़र्ज़ नमाज़ें भी अदा नहीं की जातीं, लोगों की एक ता'दाद जुमुआ़ की नमाज़ के लिये भी उस वक़्त घर से निकलती है जब जमाअ़त खड़ी होने में सिर्फ़ चन्द मिनट बाक़ी रह जाते हैं फिर जैसे ही इमाम सलाम फेर लेता है या पहली दुआ़ मांग कर फ़ारिग़ होता है, आधी से ज़ियादा मस्जिद नमाज़ियों से ख़ाली हो जाती है ।

        आह ! मुसलमानों को क्या हो गया है ? क्यूं लोग इ़बादात से जी चुराने लगे हैं ? क्यूं लोग रब्बे करीम और नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के अह़कामात पर अ़मल करने में सुस्ती का शिकार हैं ? क्यूं नफ़्ल इ़बादात का जज़्बा ख़त्म होता जा रहा है ? क्यूं रोज़ों के मुआ़मले में ह़ीले बहानों से काम लिया जा रहा है ? आख़िर क्यूं हमारी मसाजिद वीरान नज़र आ रही हैं ? क्या लोग अल्लाह पाक की ख़ुफ़्या तदबीर से अमान पा चुके हैं ? क्या उन्हें मग़फ़िरत का परवाना मिल चुका है ? क्या उन का आ'माल नामा नेकियों (Virtues) से भरपूर है ? क्या उन्हें नेकियों की ह़ाजत नहीं रही ? क्या उन्हें इस बात का मुकम्मल यक़ीन हो चुका है कि येह दुन्या से ईमान सलामत ले कर जाएंगे ? क्या येह नज़्अ़ की सख़्तियों को बरदाश्त कर पाएंगे ? क्या शरीअ़त की ना फ़रमानी कर के अन्धेरी क़ब्र में आराम पा सकेंगे ? क्या येह लोग क़ब्र व मह़्शर के सुवालात में काम्याबी से हम किनार हो पाएंगे ?

          यक़ीनन ! हम में से किसी को भी येह मा'लूम नहीं ! लिहाज़ा इस मुख़्तसर सी ज़िन्दगी को ग़नीमत जानते हुवे इस की क़द्र करनी चाहिये, ख़ुश फ़हमी के जाल से निकल कर अपने आप को फ़राइज़ व वाजिबात का पाबन्द बनाने के साथ साथ नफ़्ल इ़बादात की अदाएगी का भी आ़दी बनाना चाहिये । अपने आप को फ़राइज़ व वाजिबात और नफ़्ल इ़बादात का आ़दी बनाने के लिये शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के अ़त़ा कर्दा "72 मदनी इनआ़मात" पर अ़मल करते हुवे रोज़ाना फ़िक्रे मदीना करना इन्तिहाई मुफ़ीद अ़मल है ।

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ ! इस के मुत़ाबिक़ अ़मल करने की बरकत से हम न सिर्फ़ फ़राइज़ व वाजिबात बल्कि कई सुन्नतों और मुस्तह़ब्बात पर भी आसानी से अ़मल कर सकते हैं ।