Book Name:Namaz Ki Ahmiyat
नमाज़ के बारे में 3 फ़रामीने इलाही
ऐ आ़शिक़ाने रसूल इस्लामी बहनो ! नमाज़ की अहम्मिय्यत जानने के बा'द भी अगर कोई नमाज़ न पढ़े, तो वोह अपने हाथों दोज़ख़ में जाने का सामान करने वाली है, ह़ालांकि नमाज़ पढ़ना दुन्या व आख़िरत की सआ़दतों का ज़रीआ़ है । क़ुरआने पाक में कई मक़ामात पर न सिर्फ़ नमाज़ का ह़ुक्म दिया गया है बल्कि सवाब बयान कर के इस की तरग़ीब भी दिलाई गई है । आइये ! इस बारे में तीन फ़रामीने इलाही सुनिये । चुनान्चे, पारह 6, सूरतुन्निसा की आयत नम्बर 162 में इरशाद होता है :
وَ الْمُقِیْمِیْنَ الصَّلٰوةَ وَ الْمُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَ الْمُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَ الْیَوْمِ الْاٰخِرِؕ-اُولٰٓىٕكَ سَنُؤْتِیْهِمْ اَجْرًا عَظِیْمًا۠(۱۶۲)
(پ۶،النساء:۱۶۲)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और नमाज़ क़ाइम रखने वाले और ज़कात देने वाले और अल्लाह और क़ियामत पर ईमान लाने वाले ऐसों को अ़न क़रीब हम बड़ा सवाब देंगे ।
पारह 9, सुरतुल अन्फ़ाल की आयत नम्बर 3 और 4 में इरशाद होता है :
الَّذِیْنَ یُقِیْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَ مِمَّا رَزَقْنٰهُمْ یُنْفِقُوْنَؕ(۳) اُولٰٓىٕكَ هُمُ الْمُؤْمِنُوْنَ حَقًّاؕ-لَهُمْ دَرَجٰتٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَ مَغْفِرَةٌ وَّ رِزْقٌ كَرِیْمٌۚ(۴) (پ۹ ،الانفال: ۳،۴)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : वोह जो नमाज़ क़ाइम रखते हैं और हमारे दिये हुवे रिज़्क़ में से हमारी राह में ख़र्च करते हैं, येही सच्चे मुसलमान हैं, इन के लिये इन के रब के पास दरजात और मग़फ़िरत और इ़ज़्ज़त वाला रिज़्क़ है ।
पारह 6, सुरतुल माइदा की आयत नम्बर 12 में इरशाद होता है :
وَ قَالَ اللّٰهُ اِنِّیْ مَعَكُمْؕ-لَىٕنْ اَقَمْتُمُ الصَّلٰوةَ وَ اٰتَیْتُمُ الزَّكٰوةَ وَ اٰمَنْتُمْ بِرُسُلِیْ وَ عَزَّرْتُمُوْهُمْ وَ اَقْرَضْتُمُ اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا لَّاُكَفِّرَنَّ عَنْكُمْ سَیِّاٰتِكُمْ وَ لَاُدْخِلَنَّكُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُۚ (پ۶ ، المائدہ: ۱۲)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अल्लाह ने फ़रमाया : बेशक मैं तुम्हारे साथ हूं अगर तुम नमाज़ क़ाइम रखो और ज़कात देते रहो और मेरे रसूलों पर ईमान लाओ और उन की ता'ज़ीम करो और अल्लाह को क़र्ज़े ह़सन दो, तो बेशक मैं तुम से तुम्हारे गुनाह मिटा दूंगा और ज़रूर तुम्हें उन बाग़ों में दाख़िल करूंगा जिन के नीचे नहरें जारी हैं ।
سُبْحٰنَ اللہ ! नमाज़ियों के लिये अल्लाह पाक की बारगाह में कैसे कैसे अ़ज़ीमुश्शान इनआ़मात हैं कि कहीं उन्हें जन्नत व मग़फ़िरत की ख़ुश ख़बरियां दी जा रही हैं, तो कहीं बड़े सवाब की ख़ुश ख़बरियां सुनाई जा रही हैं जब कि अह़ादीसे मुबारका में भी नमाज़ की बहुत ज़ियादा तरग़ीब दिलाई गई है । अगर हम नमाज़ का वक़्त होते ही अपने तमाम तर दुन्यवी कामों को छोड़ कर नमाज़ की तय्यारी में मसरूफ़ हो जाया करें, बदन की आ़जिज़ी और दिलो दिमाग़ की ह़ाज़िरी के साथ नमाज़ अदा करें, तो इस की बरकत से जहां दुन्या की ढेरों भलाइयां नसीब होंगी, वहीं इस का एक उख़रवी फ़ाइदा येह भी ह़ासिल होगा कि क़ियामत के दिन येही नमाज़ हमारी नजात व मग़फ़िरत का बाइ़स बन जाएगी । जैसा कि :