Book Name:Namaz Ki Ahmiyat
ऐ आ़शिक़ाने रसूल इस्लामी बहनो ! हम नमाज़ की अहम्मिय्यत व फ़ज़ाइल के बारे में सुन रही थीं । याद रखिये ! नमाज़ दीन का सुतून है, नमाज़ बीमारियों से बचाती है, नमाज़ रोज़ी में बरकत का ज़रीआ़ है और अ़ज़ाबे क़ब्र से बचाने के साथ साथ अन्धेरी क़ब्र का चराग़ भी है । क़ुरआनो ह़दीस में जहां भी नमाज़ की अदाएगी का ह़ुक्म आया है, उस से मुराद नमाज़ को तमाम तर फ़राइज़ व वाजिबात के साथ अदा करना है । आज बहुत से लोग दुन्यवी ए'तिबार से तो एक दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, मसलन किसी का आ़लीशान बंगला देखा, तो उस जैसा बनाने की ख़्वाहिश, किसी को उ़म्दा कपड़े का शानदार लिबास पहने देखा, तो ऐसा पहनने की ख़्वाहिश, किसी की नई चमकती दमकती कार देखी, तो वैसी ही कार लेने की ख़्वाहिश और किसी का कामयाब कारोबार (Business) देखा, तो अमीरो कबीर बनने की ख़्वाहिश अंगड़ाई लेने लगती है, अल ग़रज़ ! लोग दुन्यवी मालो दौलत की मह़ब्बत के ऐसे लालची हो चुके हैं कि दिन रात उसी को ह़ासिल करने के लिये कोशिशें करते ज़रा नहीं थकते । ऐ काश ! किसी इस्लामी बहन को नेकियां करता देख कर हम भी नेक आ'माल करने वाली बन जाएं ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने बड़े बड़े सफ़र किये और सफ़र की तक्लीफे़ं बरदाश्त कीं मगर हमेशा नमाज़ अदा फ़रमाई । आइये ! इस ज़िमन में आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ का एक ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़ सुनती हैं । चुनान्चे,
आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की नमाज़ से मह़ब्बत
बावन बरस की उ़म्र में जब दूसरी बार सफ़रे ह़ज के लिये रवाना हुवे, मनासिके ह़ज (या'नी ह़ज़ के अरकान व अफ़्आ़ल) अदा करने के बा'द आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ऐसे बीमार हुवे कि दो माह से ज़ियादा साह़िबे फ़िराश (या'नी बिस्तर पर) रहे, जब कुछ सिह़्ह़तयाब हुवे, तो ज़ियारते रौज़ए अन्वर (नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के मज़ारे मुबारक की ज़ियारत) के लिये कमर बस्ता (तय्यार) हुवे और "जद्दा शरीफ़" से होते हुवे किश्ती के ज़रीए़ तीन दिन के बा'द "राबिग़" के मक़ाम पर पहुंचे और वहां से मदीनतुर्रसूल (मदीनए पाक जाने) के लिये ऊंट की सुवारी की । इसी रास्ते में जब "बीरे शैख़" पहुंचे, तो मन्ज़िल क़रीब थी लेकिन फ़ज्र का वक़्त थोड़ा रह गया था, ऊंट वालों ने मन्ज़िल ही पर ऊंट रोकने की ठानी (या'नी इरादा किया) लेकिन उस वक़्त तक नमाज़े फ़ज्र का वक़्त ख़त्म होने का अन्देशा (ख़त़रा) था । सय्यिदी आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ येह सूरते ह़ाल देख कर अपने रुफ़क़ा (या'नी साथियों) के साथ वहीं ठहर गए और क़ाफ़िला चला गया । आप (رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ) के पास किरमिच (या'नी मख़्सूस टाट का बना हुवा) डोल था मगर रस्सी मौजूद नहीं थी और कुंवां भी गहरा था, लिहाज़ा इ़मामे बांध कर पानी निकाला और वुज़ू कर के वक़्त के अन्दर नमाज़ अदा फ़रमाई मगर अब येह फ़िक्र लाह़िक़ हुई कि त़वील (लम्बा) अ़र्सा बीमार रहने की वज्ह से कमज़ोरी बहुत हो गई है, इतने मील पैदल कैसे चलेंगे ? मुंह फेर कर देखा, तो एक अजनबी (ना