Book Name:Rizq Main Tangi Kay Asbab
बात करने से ह़द दरजा एह़तियात़ कीजिये । ٭ चाहे एक दिन का बच्चा हो, अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ उस से भी आप, जनाब से गुफ़्तगू की आ़दत बनाइये, आप के अख़्लाक़ भी اِنْ شَآءَ اللّٰہ उ़म्दा होंगे और बच्चा भी आदाब सीखेगा । ٭ बात चीत करते वक़्त पर्दे की जगह हाथ लगाना, उंगलियों के ज़रीए़ बदन का मैल छुड़ाना, दूसरों के सामने बार बार नाक को छूना या नाक या कान में उंगली डालना, थूकते रहना अच्छी बात नहीं । ٭ जब तक दूसरा बात कर रहा हो, इत़मीनान से सुनिये, बात काटने से बचिये । बात करते वक़्त हमेशा याद रखिये कि ज़ियादा बातें करने से हैबत जाती रहती है । ٭ किसी से जब बात चीत की जाए, तो उस का कोई सह़ीह़ मक़्सद भी होना चाहिये और हमेशा मुख़ात़ब की समझदारी और उस की नफ़्सियात के मुत़ाबिक़ बात की जाए । ٭ बद ज़बानी और बे ह़याई की बातों से हर वक़्त परहेज़ कीजिये, गाली गलोच से इजतिनाब करते रहिये और याद रखिये ! किसी मुसलमान को बिला इजाज़ते शरई़ गाली देना ह़रामे क़त़ई़ है । (फ़तावा रज़विय्या, 21 / 127) और बे ह़याई की बात करने वाले पर जन्नत ह़राम है । ह़ुज़ूर ताजदारे मदीना, क़रारे क़ल्बो सीना صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने फ़रमाया : उस शख़्स पर जन्नत ह़राम है जो फ़ोह़्श गोई (या'नी बे ह़याई की बात) से काम लेता है । (کتابُ الصَّمْت مع موسوعۃالامام ابن ابی الدنیا، ۷/۲۰۴ حدیث: ۳۲۵) फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ : जो चुप रहा, उस ने नजात पाई । ( ترْمِذِیّ، ۴ /۲۲۵ ،حدیث: ۲۵۰۹) ٭ दौराने गुफ़्तगू क़ह्क़हा लगाने से बचिये । सरकारे अबदे क़रार, शफ़ीए़ रोज़े शुमार صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने कभी क़ह्क़हा नहीं लगाया । ज़ियादा बातें करने और बार बार क़ह्क़हा लगाने से हैबत जाती रहती है । सरकारे आ़ली वक़ार, नबियों के सरदार صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने आ़लीशान है : जब तुम किसी बन्दे को देखो कि उसे दुन्या से बे रग़बती और कम बोलने की ने'मत अ़त़ा की गई है, तो उस की क़ुर्बत व सोह़बत इख़्तियार करो क्यूंकि उसे ह़िक्मत दी जाती है । (ابن ماجہ،۴/۴۲۲،حدیث: ۴۱۰۱) ٭ "मिरआतुल मनाजीह़" में है : ह़ुज्जतुल इस्लाम, ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : गुफ़्तगू की चार क़िस्में हैं । (1) ख़ालिस मुज़िर (या'नी मुकम्मल त़ौर पर नुक़्सान देह) । (2) ख़ालिस मुफ़ीद (या'नी फ़ाइदा देने वाली) । (3) मुज़िर (या'नी नुक़्सान देह) भी, मुफ़ीद भी । (4) न मुज़िर, न मुफ़ीद । ख़ालिस मुज़िर (या'नी मुकम्मल नुक़्सान देह) से हमेशा परहेज़ ज़रूरी है, ख़ालिस मुफ़ीद कलाम (या'नी बात) ज़रूर कीजिये, जो कलाम मुज़िर भी हो, मुफ़ीद भी, उस के बोलने में एह़तियात़ करे, बेहतर है कि न बोले और चौथी क़िस्म के कलाम में वक़्त ज़ाएअ़ करना है । इन कलामों में फ़र्क़ करना मुश्किल है, लिहाज़ा ख़ामोशी बेहतर है । (मिरआतुल मनाजीह़, 6 / 464)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد