Book Name:Rizq Main Tangi Kay Asbab
रिज़्क़ की ना शुक्री, ज़वाले रिज़्क़ का सबब हो सकती है
"तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान" जिल्द 3, सफ़ह़ा नम्बर 543 पर है : जब मुसलमान अल्लाह पाक की ना शुक्री करते, यादे ख़ुदा से ग़फ़्लत को अपना शिआ़र (या'नी त़रीक़ा) बना लेते और अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात की तक्मील (या'नी उन को पूरा करने) में मसरूफ़ हो जाते हैं और अपने बुरे आ'माल की कसरत की वज्ह से ख़ुद को अल्लाह पाक की ने'मतों का ना अहल साबित कर देते हैं, तो अल्लाह पाक उन से अपनी दी हुई ने'मतें वापस ले लेता है । (तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान, 3 / 543)
पारह 13, सूरए इब्राहीम की आयत नम्बर 7 में अल्लाह पाक ने शुक्र की अहम्मिय्यत और ना शुक्री के वबाल को वाज़ेह़ करते हुवे इरशाद फ़रमाया :
لَىٕنْ شَكَرْتُمْ لَاَزِیْدَنَّكُمْ وَ لَىٕنْ كَفَرْتُمْ اِنَّ عَذَابِیْ لَشَدِیْدٌ(۷)(پ۱۳،ابراہیم:۷)
रिज़्क़ की बे क़द्री का ह़ाल और इस का वबाल
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ मौजूदा दौर में इन्तिहाई बे दर्दी के साथ की जाने वाली रिज़्क़ की ना क़द्री और बे ह़ुर्मती पर अफ़्सोस और कुढ़न का इज़्हार करते हुवे इरशाद फ़रमाते हैं : आज कल रिज़्क़ की बे क़द्री और बे ह़ुर्मती से कौन सा घर ख़ाली है ? बंगले में रहने वाले अरबपती से ले कर झोंपड़ी में रहने वाला मज़दूर तक इस बे एह़तियात़ी का शिकार नज़र आता है । शादी में त़रह़ त़रह़ के खानों के ज़ाएअ़ होने से ले कर घरों में बरतन धोते वक़्त जिस त़रह़ सालन का शोरबा, चावल और इन के अज्ज़ा बहा कर مَعَاذَ اللّٰہ ! नाली की नज़्र कर दिये जाते हैं, काश ! रिज़्क़ में तंगी के इस अ़ज़ीम सबब पर हमारी नज़र होती और खाने को ज़ाएअ़ होने से बचा लेते क्यूंकि येह (खाना) ऐसी चीज़ है जिस का अदबो एह़तिराम हमारे प्यारे आक़ा, ह़बीबे किब्रिया صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया । जैसा कि :
उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदतुना आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا फ़रमाती हैं : ताजदारे मदीना, सुल्त़ाने बा क़रीना صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ अपने मकाने आ़लीशान में तशरीफ़ लाए, रोटी का टुक्ड़ा पड़ा हुवा देखा, उस को ले कर पोंछा फिर खा लिया और फ़रमाया : يَا عَائِشَةُ اَكْرِمِيْ كَرِيْمًا فَاِنَّهَا مَا نَفَرَتْ عَنْ قَوْمٍ قَطُّ فَعَادَت اِلَيْهِمْ ऐ आ़इशा (رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا) ! अच्छी चीज़ का एह़तिराम करो कि येह चीज़ (या'नी रोटी) जब किसी क़ौम से भागी है, लौट कर नहीं आई ।
(ابن ماجہ، کتاب الاطعمۃ، باب النھی عن القاء الطعام، ۴/ ۴۹،حدیث:۳۳۵۳)
लिहाज़ा हमें खाने जैसी अ़ज़ीम ने'मत की ख़ूब क़द्र करनी चाहिये और इस के साथ साथ खाना खाते वक़्त खाने की सुन्नतों और आदाब का भी ख़ूब ख़ूब ख़याल रखना चाहिये क्यूंकि अगर हम खाने के वक़्त खाने की सुन्नतों और आदाब को पेशे नज़र रखेंगे, तो اِنْ شَآءَ اللّٰہ न सिर्फ़ रिज़्क़ की बे क़द्री से बचने में कामयाब हो जाएंगे बल्कि दुन्या व आख़िरत की ढेरों भलाइयों के साथ साथ रिज़्क़ में ख़ैरो बरकत की ने'मत से भी माला माल होंगे । आइये ! प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का अ़त़ा किया हुवा रिज़्क़ में ख़ैरो बरकत का मदनी नुस्ख़ा सुनते और उसे अपनाने की निय्यत करते हैं । चुनान्चे,