Book Name:Rizq Main Tangi Kay Asbab
एक का रिज़्क़ अल्लाह करीम ने अपने ज़िम्मे ले रखा है । चुनान्चे, पारह 12, सूरए हूद की आयत नम्बर 6 में अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है :
وَ مَا مِنْ دَآبَّةٍ فِی الْاَرْضِ اِلَّا عَلَى اللّٰهِ رِزْقُهَا(پ۱۲،ھود:۶)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और ज़मीन पर चलने वाला कोई जानदार ऐसा नहीं जिस का रिज़्क़ अल्लाह के ज़िम्मए करम पर न हो ।
जब ख़ुद अल्लाह पाक हर जानदार के रिज़्क़ का ज़िम्मेदार है, तो हमें चाहिये कि उसी की ज़ात पर भरोसा करें और सूद ले कर अपने ही मुसलमान भाइयों को नुक़्सान पहुंचाने के बजाए जाइज़ और ह़लाल त़रीके़ से रिज़्क़ त़लब करें, اِنْ شَآءَ اللّٰہ जो नसीब में है वोह ज़रूर मिलेगा । दो आ़लम के मालिको मुख़्तार, मक्की मदनी सरकार صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने आ़लीशान है : बेशक रिज़्क़ बन्दे को तलाश करता है, जैसे उस की मौत उसे तलाश करती है ।
(صحیح ابن حبان،کتاب الزکاة، باب ماجاء فی الحرص…الخ، ۴/۹۸، حدیث:۳۲۲۷)
लिहाज़ा इस ह़दीसे पाक को पेशे नज़र रखते हुवे अल्लाह पाक पर मुकम्मल भरोसा रखना चाहिये और इस बात को अपने पल्ले से बांध लेना चाहिये कि रिज़्क़ की कुशादगी, अल्लाह पाक की रिज़ा में ही पोशीदा है । जब हमारे मुआ़शरे का हर फ़र्द ज़ाहिरी अस्बाब के साथ साथ रह़मते इलाही और फ़ज़्ले इलाही त़लब करने वाला होगा, अपने दिल में तक़्वा व परहेज़गारी का पौदा लगाएगा, अपने आप को गुनाहों से बचाएगा, अल्लाह पाक का ख़ौफ़ दिल में बिठाएगा और उस पर मुकम्मल भरोसा करेगा, तो اِنْ شَآءَ اللّٰہ हमारे मुआ़शरे में ख़ुश ह़ाली का राज होगा और रिज़्क़ में ऐसी ख़ैरो बरकत होगी जो हमारे गुमान में भी नहीं । जैसा कि पारह 28, सूरतुत़्त़लाक़ की आयत नम्बर 2 और 3 में अल्लाह करीम का इरशाद है :
وَ مَنْ یَّتَّقِ اللّٰهَ یَجْعَلْ لَّهٗ مَخْرَجًاۙ(۲) وَّ یَرْزُقْهُ مِنْ حَیْثُ لَا یَحْتَسِبُؕ-وَ مَنْ یَّتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ فَهُوَ حَسْبُهٗؕ
(پ ۲۸، الطلاق:۲ -۳)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : जो अल्लाह से डरे, अल्लाह उस के लिये निकलने का रास्ता बना देगा और उसे वहां से रोज़ी देगा जहां उस का गुमान भी न हो और जो अल्लाह पर भरोसा करे, तो वोह उसे काफ़ी है ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! रिज़्क़ में तंगी और मई़शत में नुक़्सान का एक सबब "ज़कात न देना" भी है । याद रखिये ! ज़कात इस्लाम का बुन्यादी रुक्न और अहम तरीन माली इ़बादत है, येह ऐसा ख़ूब सूरत निज़ाम है जिस के ज़रीए़ मुआ़शरे के ग़रीब व मोह़्ताज लोगों को माली मदद मिलती है । अगर सारे मालदार लोग दुरुस्त त़रीक़े से ज़कात अदा करें, तो ग़ुर्बत का ख़ातिमा हो जाए । क़ुरआने करीम में ज़कात अदा न करने वालों के बारे में सख़्त वई़द आई है । चुनान्चे, पारह 10, सूरतुत्तौबा की आयत नम्बर 34 में इरशादे बारी है :