Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat

Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat

  1. जिस ने हिदायत व भलाई की दा'वत दी, तो उसे इस भलाई की पैरवी करने वालों के बराबर सवाब मिलेगा (और) उन के अज्र (या'नी सवाब) में कोई कमी वाके़अ़ न होगी और जिस ने गुमराही की दा'वत दी, उसे उस गुमराही की पैरवी करने वालों के बराबर गुनाह होगा (और) उन के गुनाहों में कोई कमी न होगी । (مسلم،کتاب العلم، باب من سن حسنۃالخ ،ص۱۴۳۸،حدیث:۲۶۷۴)

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : अगर किसी की तब्लीग़ से एक लाख नमाज़ी बनें, तो उस मुबल्लिग़ को हर वक़्त एक लाख नमाज़ों का सवाब (अ़त़ा) होगा और उन नमाज़ियों को अपनी अपनी नमाज़ों का सवाब । इस से मा'लूम हुवा ! ह़ुज़ूर (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) का सवाब मख़्लूक़ के अन्दाज़े से वरा (या'नी दूर) है । रब्बे करीम फ़रमाता है :

(پ۲۹،القلم:۳) وَ اِنَّ لَكَ لَاَجْرًا غَیْرَ مَمْنُوْنٍۚ(۳)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और यक़ीनन तुम्हारे लिये ज़रूर बे इन्तिहा सवाब है ।

          ऐसे ही वोह मुसन्निफ़ीन (या'नी किताबें लिखने वाले) जिन की किताबों से लोग हिदायत पा रहे हैं, क़ियामत तक लाखों का सवाब उन्हें पहुंचता रहेगा । (मिरआतुल मनाजीह़, 1 / 160)

      मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! मा'लूम हुवा ! नेकी की दा'वत चाहे इनफ़िरादी ह़ैसिय्यत से हो या इजतिमाई़ त़ौर पर, देने वालों और सुन कर अ़मल करने वालों सब को दीनो दुन्या की बे शुमार बरकतें और भलाइयां नसीब होती हैं । लिहाज़ा नेकियों के शैदाई बन जाइये, दूसरों को नमाज़ी बनाने की मुहिम तेज़ से तेज़ तर कर दीजिये, जब भी नमाज़े बा जमाअ़त के लिये मस्जिद जाने लगें, तो दूसरों को तरग़ीब दे कर साथ लेते जाइये, जिन्हें नमाज़ नहीं आती, उन्हें नमाज़ सिखाइये, अगर हमारे सबब एक भी नमाज़ी बन गया, तो जब तक वोह नमाज़ें पढ़ता रहेगा, उस की हर हर नमाज़ का हमें भी सवाब मिलता रहेगा । उ़मूमन इ़शा की नमाज़ के बा'द आ़शिक़ाने रसूल की मदनी