Ita'at-e-Mustafa

Book Name:Ita'at-e-Mustafa

चीज़ों में की जाएगी । (1) आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के किये गए कामों में । (2) बयान कर्दा फ़रामीन में और (3) आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के सामने जो काम हुवा और ह़ुज़ूर عَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام ने मन्अ़ न फ़रमाया, उस में भी इत़ाअ़त होगी, या'नी मुस्त़फ़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने जो फ़रमा दिया उस को मानो, ह़ुज़ूर عَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام ने जो कुछ ख़ुद कर के दिखाया उसे भी मानो और जो किसी को करते हुवे देख कर मन्अ़ न फ़रमाया, उसे मानो । मज़ीद फ़रमाते हैं : रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इत़ाअ़त का ह़ुक्म फ़रमाने से येह न समझा जाए कि अगर ह़ुज़ूर عَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام की इत़ाअ़त न की गई, तो उन का कुछ नुक़्सान होगा, वोह तो अपना फ़र्ज़े तब्लीग़ अदा फ़रमा चुके, अब न मानने और इत़ाअ़ते मुस्त़फ़ा न करने का वबाल तुम पर है ।

(शाने ह़बीबुर्रह़मान, स. 66, मुलख़्ख़सन, मुल्तक़त़न)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!        صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

          मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! अल्लाह करीम ने इन्सानों को ज़िन्दगी गुज़ारने और दुन्या व आख़िरत की कामयाबी पाने के लिये अपनी और अपने ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इत़ाअ़त व फ़रमां बरदारी का ह़ुक्म दिया है और साथ ही येह इख़्तियार भी दिया है कि अह़कामे इलाही पर अ़मल करते हुवे चाहें तो जन्नत की अबदी या'नी हमेशा बाक़ी रहने वाली ने'मतों से लुत़्फ़ उठाएं या उस की ना फ़रमानी कर के जहन्नम की ह़क़दार ठहरें । लिहाज़ा दुन्या व आख़िरत में कामयाब होने के लिये सरकार صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के पाकीज़ा किरदार को अपनाने ही में आ़-आ़फ़िय्यत है क्यूंकि आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की मुबारक ज़िन्दगी हमारे लिये बेहतरीन नुमूनए अ़मल है । चुनान्चे, पारह 21, सूरतुल अह़ज़ाब की आयत नम्बर 21 में इरशाद होता है :

(پ 21، الاحزاب، 21) لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِیْ رَسُوْلِ اللّٰهِ اُسْوَةٌ حَسَنَةٌ

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : बेशक तुम्हारे लिये अल्लाह के रसूल में बेहतरीन नुमूना मौजूद है ।