Ita'at-e-Mustafa

Book Name:Ita'at-e-Mustafa

मदनी बहार या बरकत मिली हो, तो आख़िर में ज़िम्मेदार इस्लामी बहन को जम्अ़ करवा दें ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!        صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

शादी कर लो

          मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان में इत़ाअ़ते रसूल का ऐसा जज़्बा था कि वोह आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के हर ह़ुक्म पर आंखें बन्द कर लिया करते थे । चुनान्चे, ह़ज़रते रबीआ़ अस्लमी رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ से रिवायत है कि मुझे रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ख़िदमत गुज़ारी का शरफ़ ह़ासिल था । एक दिन नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : ऐ रबीआ़ ! तुम शादी क्यूं नहीं कर लेते ? मैं ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! मैं शादी नहीं करना चाहता क्यूंकि एक तो मेरे पास इतना मालो अस्बाब नहीं कि एक औ़रत की ज़रूरिय्यात पूरी कर सकूं और दूसरा येह कि मुझे येह बात पसन्द नहीं कि कोई चीज़ मुझे आप से दूर कर दे । नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने मुझ से ए'राज़ फ़रमाया और मैं ख़िदमत करता रहा । कुछ अ़र्से बा'द आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने फिर इरशाद फ़रमाया : रबीआ़ ! तुम शादी क्यूं नहीं कर लेते ? मैं ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह  (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) ! मैं शादी नहीं करना चाहता क्यूंकि एक तो मेरे पास इतना मालो अस्बाब नहीं कि एक औ़रत की ज़रूरिय्यात पूरी कर सकूं और दूसरा येह कि मुझे येह बात पसन्द नहीं कि कोई चीज़ मुझे आप से दूर कर दे । नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने मुझ से ए'राज़ फ़रमाया लेकिन फिर मैं ने सोचा कि रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मुझ से ज़ियादा जानते हैं कि दुन्या व आख़िरत में मेरे लिये क्या चीज़ बेहतर है ? अगर अब आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने फ़रमाया, तो कह दूंगा : ठीक है । या रसूलल्लाह (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) ! आप मुझे जो चाहें ह़ुक्म दें । चुनान्चे, जब तीसरी बार आप صَلَّی اللّٰہُ