Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten

Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten

وَ اٰمَنْتُمْ بِرُسُلِیْ وَ عَزَّرْتُمُوْهُمْ وَ اَقْرَضْتُمُ اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا لَّاُكَفِّرَنَّ عَنْكُمْ سَیِّاٰتِكُمْ وَ لَاُدْخِلَنَّكُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُۚ6، المائدۃ : 12)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और मेरे रसूलों पर ईमान लाओ और उन की ता'ज़ीम करो और अल्लाह को क़र्जे़ ह़सन दो, तो बेशक मैं तुम से तुम्हारे गुनाह मिटा दूंगा और ज़रूर तुम्हें उन बाग़ों में दाख़िल करूंगा जिन के नीचे नहरें जारी हैं ।

       बिल ख़ुसूस हु़ज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर ईमान लाने के बा'द आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीम करने वालों को काम्याबी की ख़ुश ख़बरी अ़त़ा फ़रमाई है । चुनान्चे, पारह 9, सूरतुल आ'राफ़ की आयत नम्बर 157 में इरशाद होता है :

فَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا بِهٖ وَ عَزَّرُوْهُ وَ نَصَرُوْهُ وَ اتَّبَعُوا النُّوْرَ الَّذِیْۤ اُنْزِلَ مَعَهٗۤۙ-اُولٰٓىٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ۠(۱۵۷)9، الاعراف، 157)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : तो वोह लोग जो उस नबी पर ईमान लाएं और उस की ता'ज़ीम करें और उस की मदद करें और उस नूर की पैरवी करें जो उस के साथ नाज़िल किया गया, तो वोही लोग फ़लाह़ पाने वाले हैं ।

       याद रखिये ! येह इनआ़मात उसी वक़्त ह़ासिल होंगे जब हम हर मुआ़मले में तमाम अम्बिया عَلَیْہِمُ السَّلَام ख़ुसूसन सय्यिदुल अम्बिया, मुह़म्मदे मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीमो तौक़ीर को अपने ईमान का ह़िस्सा समझेंगे और इन की मा'मूली तौहीन से भी बचने की कोशिश करेंगे । अल्लाह पाक ने आदाबे नबवी सिखाते हुवे जहां बारगाहे रिसालत में आवाज़ बुलन्द करने से मन्अ़ फ़रमाया, वहीं आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को आ़म अन्दाज़ में पुकारने की भी मुमानअ़त फ़रमाई है । चुनान्चे, पारह 18, सूरतुन्नूर की आयत नम्बर 63 में इरशाद होता है :

لَا تَجْعَلُوْا دُعَآءَ الرَّسُوْلِ بَیْنَكُمْ كَدُعَآءِ بَعْضِكُمْ بَعْضًاؕ    (پارہ:۱۸، النور:۶۳)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : (ऐ लोगो !) रसूल के पुकारने को आपस में ऐसा न बना लो जैसे तुम में से कोई दूसरे को पुकारता है ।

       सदरुल अफ़ाज़िल, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : (इस आयत के) एक मा'ना मुफ़स्सिरीन ने येह भी बयान फ़रमाए हैं कि (जब कोई) रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को निदा करे (या'नी पुकारे), तो अदब व तकरीम और तौक़ीर व ता'ज़ीम के साथ आप (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) के मुअ़ज़्ज़म (या'नी ता'ज़ीम के लाइक़) अल्क़ाब से नर्म आवाज़ के साथ