Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten
सब से मगर औ़रत से उस के मह़ारिम ही ता'ज़ियत करें । (बहारे शरीअ़त, 1 / 852) ٭ ता'ज़ियत में येह कहे : अल्लाह पाक आप को सब्रे जमील अ़त़ा फ़रमाए और इस मुसीबत पर (सब्र करने के बदले) अज्रे अ़ज़ीम अ़त़ा फ़रमाए और अल्लाह पाक मर्ह़ूम की मग़फ़िरत फ़रमाए । ٭ सोग के अय्याम गुज़र जाने के बा वुजूद ई़द आने पर मय्यित का सोग (या'नी ग़म करना) या सोग के सबब उ़म्दा लिबास न पहनना नाजाइज़ व गुनाह है । अलबत्ता वैसे ही कोई उ़म्दा लिबास न पहने, तो गुनाह नहीं । ٭ नौह़ा या'नी मय्यित के औसाफ़ मुबालग़े के साथ (या'नी बढ़ा चढ़ा कर) बयान कर के आवाज़ से रोना जिस को "बैन" कहते हैं, ह़राम है । (बहारे शरीअ़त, 1 / 854, मुल्तक़त़न) ٭ अत़िब्बा (या'नी त़बीब ह़ज़रात) कहते हैं कि (जो अपने अ़ज़ीज़ की मौत पर सख़्त सदमे से दो चार हो उस के) मय्यित पर बिल्कुल न रोने से सख़्त बीमारी पैदा हो जाती है, आंसू बहने से दिल की गर्मी निकल जाती है, इस लिये इस (या'नी बिग़ैर नौह़ा) रोने से हरगिज़ मन्अ़ न किया जाए । (मिरआतुल मनाजीह़, 2 / 501)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد